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राजस्थान का सवातंत्र्य आन्दोलन : भूले बिसरे स्वतन्त्रता सेनानी

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राजस्थान का सवातंत्र्य आन्दोलन : भूले बिसरे स्वतन्त्रता सेनानी

भारत राष्‍ट्र की स्‍वतन्‍त्रता का इतिहास उन स्‍वतन्‍त्रता सेनानियों की शाश्‍वत स्‍मृति का इतिहास है, जिन्‍होंने प्राणपण से अपने जीवन की प‍रवाह न करते हुए राष्‍ट्रभक्ति के उत्‍कृष्‍ट आदर्श का प्रस्‍तुतीकरण किया। अनेक स्‍वतन्‍त्रता सेनानी नींव की ईंट के रूप में शहीद हो गये,जिनकी पूर्णतया जानकारी भी शेष नहीं बची है। अनेक स्‍वतन्‍त्रता सेनानी जिन्‍होंने क्रान्ति का सूत्रपात किया एवं स्‍वतन्‍त्रता संग्राम की बागडोर अपने हाथों में सँभाली उनमें से कुछ के विषय में ही हम जानते हैं। आज भारतीय स्‍वतन्‍त्रता की 74 वीं वर्षगांठ के सुअवसर पर राजस्‍थान में स्‍वतन्‍त्रता आन्‍दोलन का विहंगम परिदृश्‍य भारतीय सपूतों एवं नौनिहालों के लिए राष्‍ट्रभक्ति का प्रेरणादायी अजस्र स्रोत है।

राजस्‍थान में स्‍वतन्‍त्रता आन्‍दोलन के सत्‍प्रयासों का प्रारम्‍भ 28 मई 1857 से माना जाता है। स्‍वतन्‍त्रता आन्‍दोलन के प्रथम स्‍वतन्‍त्रता सेनानी बीकानेर निवासी अमरचन्‍द बॉंठिया थे, जिन्‍होंने अपनी सम्‍पूर्ण संचित अपार धनराशि रानी लक्ष्‍मीबाई एवं तॉतिया टोपे को स्‍वतन्‍त्रता संग्राम हेतु दान कर दी थी। ऐसे उदारमना भाभाशाह के त्‍याग एवं बलिदान को हम शतश: नमन करते हैं। आपको 1857 के समर में ही अंग्रेज सरकार द्वारा फॉसी पर लटका दिया गया था।

1857 की क्रान्ति स्‍वतन्‍त्रता आन्‍दोलन का प्रथम चरण था। यहीं से स्‍वतन्‍त्रता सेनानियों ने अपनी सक्रिय भूमिका निभायी । हम उन भूले बिसरे स्‍वतन्‍त्रता सेनानियों को अपनी वाणी से श्रद्धा़ञ्जलि अर्पित कर रहे हैं, जो राजस्‍थान के स्‍वतन्‍त्रता संग्राम में नींव की ईंट के रूप में आज भी अज्ञात से हैं। 1857 की क्रान्ति के क्रान्तिकारियों में उल्‍लेखनीय हैं:- टोंक के मीर आलम खाँ‚ सूबेदार शीतल प्रसाद‚ तिलकराम‚ आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह‚ कोटा के जयदयाल मेहराब खान, गुलमुहम्‍मद‚ अम्‍बर खाँ‚ मुहुम्‍मद खाँ‚ धौलपुर के रामचन्‍द्र, हीरालाल इत्‍यादि । इनमें से कोटा के मेहराब खान एवं गुल मुहम्‍मद को 15 अक्‍टूबर 1857 को फॉसी दी गयी थी। राष्‍ट्र के लिए आत्‍म बलिदान करने वाले ऐसे सपूतों के प्रति हम सतत श्रद्धावनत हैं। राजस्‍थान को इस 1857 की क्रान्ति का अन्तिम चरण सीकर में रहा।

यद्यपि 1857 की क्रान्ति सफल नहीं रही तथापि स्‍वतन्‍त्रता के लिए जिस आन्‍दोलन का सूत्रपात किया गया, यह उसकी ऐसी ठोस नींव बन गयी। जिससे निरन्‍तर 1947 तक की दीर्घकालीन अवधि तक क्रान्तिकारियों ने अपनी सक्रियता को सशक्‍त रूप से सुस्थिर बनाये रखा। 1857 की क्रान्ति के पश्‍चात् किसान आन्‍दोलनों का एक लम्‍बा कालखण्‍ड उपस्थित होता है, जिसे स्‍वतन्‍त्रता आन्‍दोलन का मध्‍यभाग कहना उचित होगा। किसान आन्‍दोलनों का प्रारम्‍भ बिजोलिया से 1897 से प्रारम्‍भ हुआ। 1941 तक राजस्‍थान में विविध स्‍थानों पर किसान आन्‍दोलनों के माध्‍यम से क्रान्तिकारी गतिविधियॉ सक्रिय रहीं। 1913 से साधु सीताराम ने किसानों को संघटित करने एवं संघटन खड़े करने के अतुलनीय प्रयास किये। 14 मई 1925 को नीमूचाणा हत्‍याकाण्‍ड ऐसी बर्बर घटना थी, जिसे स्‍वयं गाँधी जी ने जलियाँ वाला बाग की घटना से भी अधिक नृशंस एवं वीभत्‍स बताया था। उन्‍होंने इसे ”डायरिज्‍म डबल डिस्ट्रिल्‍ड” शब्‍द से व्‍यक्त किया था। इसमें लगभग 1500 क्रान्तिकारी गोलियों से भून दिये गये थे।

1920 में महात्‍मा गाँधी द्वारा सत्‍याग्रह आन्‍दोलन प्रारम्‍भ किया जा चुका था। राजस्‍थान के शेखावाटी में गाँधी जी के आगमन से इस आन्‍दोलन का सूत्रपात झुन्‍झुनूं वाटी से हुआ। यहाँ के क्रान्तिकारियों में पं. ताडकेश्‍वर शर्मा का नाम उल्‍लेखनीय है। आपने अजमेर सत्‍याग्रह आन्‍दोलन का नेतृत्‍व किया तथा ‘ग्राम’ नामक हस्‍तलिखित समाचार पत्र के माध्‍यम से क्रान्तिकारियों को सूचनायें प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। शेखावाटी में 1934 में बोसाणा काण्‍ड की घटना अत्‍यन्‍त निन्‍दनीय थी। इस काण्‍ड में पुरूषों पर ही नहीं‚ स्त्रियों पर भी पाशविक अत्‍याचार किये गये। श्रीमती अंजना देवी चौधरी ने 1939 में सत्‍याग्रह आन्‍दोलन का नेतृत्‍व किया था। श्रीमती सुमित्रा खेतान एवं दुर्गावती देवी शर्मा शेखावाटी की उल्‍लेखनीय क्रान्तिकारी महिलाएँ थीं‚जिन्‍होंने पृथक् से महिला सत्‍याग्रहियों के संघटन खड़े किये थे। दुर्गावती देवी शर्मा जयपुर में 18 मार्च 1939 को गिरफ्तार की गयी थी तथा उन्‍हें चार माह तक जयपुर केन्द्रिय कारागार में रखा गया था।

शेखावाटी की महिला क्रान्तिकारियों में श्रीमती रमादेवी जो बाल विधवा थी, वह महिला जनजागरण के साथ-साथ बिजौलिया किसान आन्‍दोलन में सक्रिय रही तथा 1930 में अजमेर में गिरफ्तारी के बाद केन्‍द्रीय कारागार में छ: माह तक रही। 1939 में भी जयपुर में गिरफ्तार की गयीं तथा 4 माह तक जयपुर केन्‍द्रीय कारागार में रही । 1929 से लेकर 1947 तक आपने सक्रिय क्रान्तिकारी के रूप में भूमिका निभायी ।

1931 से राजस्‍थान में प्रजामण्‍डलों की स्‍थापना का कार्य भी स्‍वतन्‍त्रता आन्‍दोलन का एक अत्‍यन्‍त उल्‍लेखनीय पहलू है, जिसे नजरअन्‍दाज नहीं किया जा सकता । सर्वप्रथम 1931 में जयपुर एवं बूंदी में तत्‍पश्‍चात् 1934 में जयपुर एवं कोटा में, 1936 में बीकानेर में, 1938  में मेवाड़ तथा अलवर में, 1939 में सिरोही एवं करौली में तथा 1944 में डूँगरपुर में प्रजामण्‍डल बने थे। इनके संस्‍थापक संचालक एवं अध्‍यक्ष क्रान्तिकारी ही थे, अत: उनके महनीय योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

जयपुर के समीप बिलौंची ग्रामवासी पं. बद्रीनारायण दोतोलिया का भी स्‍वतन्‍त्रता आन्‍दोलन में पर्याप्‍त योगदान रहा। आप 17 नवम्‍बर 1928 को लाहौर में लाला लाजपतराय के साथ सविनय अवज्ञा आन्‍दोलन में सक्रिय होने के कारण पुलिस द्वारा किये गये लाठीचार्ज में घायल हुए थे तथा लाला लाजपतराय की मृत्‍यु हो गयी थी । पण्डित जी भारत के स्‍वतन्‍त्र होने के बाद 17 अगस्‍त 1947 को लाहौर से वापस जयपुर लौटे थे। 14 अगस्‍त को पाकिस्‍तान की घोषणा के बाद हुए भीषण कत्‍लेआम में भी आपने अनेक भारतीयों की रक्षा की थी।   

1930 में सवाईमाधोपुर में स्‍वदेशी आन्‍दोलन के सूत्रधार पण्डित भालचन्‍द्र शर्मा के योगदान का उल्‍लेख करना भी यहाँ प्रासंगिक होगा । आपने कलकत्‍ता में 1920 में बड़ी संख्‍या में छात्रों को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सत्‍याग्रह हेतु संघटित किया था तथा उसमें आपको गिरफ्तार भी किया गया था। 1939 में एक मास तक आप मोहनपुरा कारागार में रहे । कारावास से मुक्‍त होने पर न्‍यायाधीश ने पुन: चार मास के कारावास से दण्डित किया था।

1939 में सीकर के क्रान्तिकारी वेंकटेश पारीक का उल्‍लेख करना यहॉ उचित होगा, जिन्‍होने कूदन,गोठडा मोल्‍यासी एवं बठोठ के जन आन्‍दोलनों का नेतृत्‍व किया था तथा स्‍वदेशी आन्‍दोलन में भी सक्रिय भूमिका निभायी थी । 1942 के भारत छोडो आन्‍दोलन में गिरफ्तारी के बाद आपको भी 6 माह तक कारागार में रहना पडा था।

बाँसवाडा के सत्‍याग्रहियों में पण्डित दुर्गादत्‍त त्रिपाठी ने 1920 से स्‍वतन्‍त्रता संग्राम के पुण्‍यकार्य को अपने हाथ में लिया। साइमन कमीशन के विरोधियों के विवि‍ध क्रियाकलापों में आप सक्रिय रहे थे। आप क्रान्तिकारियों को गुप्‍त रूप से शस्‍त्र भी उपलब्‍ध कराते थे। आपने रणभेरी नामक पत्रिका का प्रकाशन एवं संपादन भी किया था, जो लीथो से छपती थी तथा व्‍यक्तिगत रूप से क्रान्तिकारियों तक पहुँचाई जाती थी।

सर्वोदयी नेता हरिभाउ उपाध्‍याय का अवदान भी राजस्‍थान के स्‍वतन्‍त्रता आन्‍दोलन की पृष्‍ठभूमि में चिरस्‍मरणीय रहेगा। आपने नमक आन्‍दोलन के समय ब्‍यावर में सत्‍याग्रहियों का नेतृत्‍व किया था तथा ब्रिटिश सरकार ने दो वर्ष के कारावास से आपको दण्डित भी किया था। आपने हटूण्‍डी में गाँधी आश्रम एवं महिला शिक्षा सदन की स्‍थापना कर राष्‍ट्रसेवा में महनीय योगदान दिया ।

बीकानेर में वैद्य मघाराम उल्‍लेखनीय क्रान्तिकारी रहे । 1931 में बीकानेर षडयन्‍त्र केस के माध्‍यम से आप पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। आपने ही बीकानेर में प्रजामण्‍डल की स्‍थापना की थी 1945 के किसान आन्‍दोलन का नेतृत्‍व किया फलस्‍वरूप दूधवा खारा में आपको गिरफ्तार कर लिया गया, आप भी तीन माह कारावास में रहे।

1942 में भारत छोडो आन्‍दोलन की पृष्‍ठभूमि में कोटा के पण्डित नयनूराम शर्मा चिरस्‍मरणीय रहेंगे। आप 1920 से ही सक्रिय क्रान्तिकारी रहे । 1923 में डाबी में जनसभा में झण्‍डा गान करने पर पुलिस की गोली से नानक भील का बलिदान हुआ था तथा आपको कोटा राज्‍य से निष्‍कासित कर दिया गया था। बाद में बून्‍दी जिले के निवाणा ग्राम में आपको गिरफ्तार किया गया। आपको 3 वर्ष 6 माह का कारावास भोगना पड़ा । आपने 1941 तक ऐसी पृष्‍ठभूमि तैयार कर दी थी, जिससे कोटा में भारत छोडो आन्‍दोलन का व्‍यापक रूप देखने को मिला ।

हाडौती के अन्‍य उल्‍लेखनीय क्रान्तिकारी थे पण्डित अभिन्‍न हरि एवं मास्‍टर बजरंगलाल । मास्‍टर बजरंगलाल ने नागपुर में बाबा अर्जुन के साथ भारत छोडो आन्‍दोलन का सफल नेतृत्‍व किया था। बाबा अर्जुन पुलिस की गोली से मारे गये थे। जयपुर के निकटवर्ती ग्राम खोरा बीसल की निवासी श्रीमती रामप्‍यारी देवी शर्मा भी 1942 के भारत छोडो आन्‍दोलन की सक्रिय कार्यकर्त्‍ता रही। आपने 28 मार्च 1942 को जयपुर में प्रथम बार उत्‍तरदायी शासन दिवस मनाया । आपकी सक्रियता को देख कर अनेक क्रान्तिकारी जुट गये थे तथा ‘यूनियन जैक’ ध्‍वज जला कर विरोध प्रदर्शन किया गया था।

लोहागढ के क्रान्तिकारी सपूत श्री रमेश स्‍वामी भी आज तक उन वृद्धों की चिर स्‍मृतियों में विद्यमान हैं जिन्‍होंने उनके योगदान को पढा या सुना था। 1938 में आपने लाहौर में रहकर सिन्‍ध प्रान्‍त में जनजागरण का कार्य किया । 1939 में भरतपुर में क्रान्ति का अलख जगाया। भारत में सत्‍याग्रह आन्‍दोलन के आप सूत्रधार रहे। 1942 के आन्‍दोलन में भुसावर में आप गिरफ्तार किये गये। आप दो मास तक कारावास में रहे। 05 फरवरी 1947 को ब्रिटिश शासन के कुचक्र में आप पुलिस के वाहन से मारे गये ।

जोधपुर के बालमुकुन्‍द बिस्‍सा भी 09 जून 1942 को ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत रक्षा कानून के अन्‍तर्गत गिरफ्तार किये गये थे तथा जेल में ही 19 जून को आपका निधन हो गया था। ऐसे अनेकानेक क्रान्तिकारी रहे जिन्‍होंने राजस्‍थान के स्‍वतन्‍त्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति दे दी । आज आजादी के इस पावन पर्व पर हम उन सभी ज्ञात-अज्ञात क्रान्तिकारियों को हृदय से श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हैं तथा यह कामना करते है कि स्‍वतन्‍त्र भारत विश्‍व के अन्‍य राष्‍ट्रों के मध्‍य वर्चस्‍व को अक्षुण्‍ण बनाये रखे।

डॉ. रामदेव साहू

द्वारा राजस्‍थान संस्‍कृत अकादमी, जयपुर

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