पं. नेहरू, संस्कृत और संस्कृति
May 15, 2020 2020-07-25 5:47पं. नेहरू, संस्कृत और संस्कृति
पं. नेहरू, संस्कृत और संस्कृति
पं. नेहरू, संस्कृत और संस्कृति / Pt. NEHRU SANSKRIT AND CULTURE
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान कांग्रेस में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi), महामना मालवीय (Mhamana Malviya), लोकमान्य तिलक (Lokmany Tilak ), सरदार पटेल ( Sardar Patel) आदि के कारण संस्कृत के प्रति श्रद्धा का वातावरण बना। गॉधीजी (Gandhi Ji) तो प्रत्येक भारतीय के लिए संस्कृत का ज्ञान आवश्यक मानते थे चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो। पं. नेहरू ( Pt. Jwaharlal Nehru) अतीत और वर्तमान के सम्बन्धों पर तर्कपूर्ण दृष्टिकोण रखते थे। अहमदनगर कारावास के दौरान 1944 में उन्होंने ‘द डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ (Discovery Of India ) नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रंथ पंडित नेहरू के भारतीय इतिहास, संस्कृति और उसके घटनाक्रम पर उनकी समझ का परिचायक है। नेहरूजी अतीत का कोरा गुणानुवाद नहीं करते अपितु समालोचनात्मक श्रद्धा के साथ तर्क और तथ्य के आधार पर उसकी तात्विक विवेचना करते हैं। ‘द डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ ग्रंथ के 10 अध्यायों में से चौथा और पाँचवा अध्याय प्राचीन भारतीय सभ्यता, संस्कृति धर्म, दर्शन, ज्ञान- परंपरा तथा उसके प्रतिनिधि स्रोतों की समीक्षा पर आधारित है जो संस्कृत भाषा में निबद्ध थे। इनमें सिंधु सभ्यता, आर्य जीवन, हिंदुत्व( Hindutwa)), वैदिक साहित्य ( Vaidik Litrature) , संस्कृति, उपनिषद, भारतीय दार्शनिक परंपराएं, महाकाव्य, इतिहास ( History), मिथक, महाभारत (Mhabharat), भगवद् गीता (Bhagwat Geeta), बुद्ध (Buddha) तथा महावीर (Mahaveer) के समकालीन भारत (India) और स्थापित मूल्यों की व्यापक समीक्षा की गई है।
पंडित जवाहरलाल नेहरू संस्कृत भाषा ( Sanskrit Language) और उसमें निहित प्रज्ञा के प्रबल प्रशंसक थे। वे आधुनिक भारत के स्वप्नद्रष्टा थे। आधुनिक स्वाधीन भारत में संस्कृत के उन्नयन के लिए उन्होंने प्रभावी कार्य किए। प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू जी ने जब भी अवसर मिला सदैव संस्कृत के महत्व को स्वीकार किया। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University ) के दीक्षांत भाषण में भारत को बौद्धिक और सांस्कृतिक उच्चाशय प्रदान करने वाले हमारे पूर्वजों और उनकी विरासत पर अपना गर्व प्रकट किया।
उनका मानना था कि भारत की गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत में प्रवेश करने का एकमात्र द्वार संस्कृत है। 1956 में भंडारकर प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, पुणे में भाषण के दौरान उनके द्वारा प्रकट यह विचार अत्यंत प्रासंगिक है “कभी-कभी मैं आश्चर्य करता हूँ कि जिन अनेक चीजों ने भारत के हजारों वर्ष लंबे इतिहास में उसका गौरव बढ़ाया है उनमें सबसे महत्वपूर्ण वस्तु क्या हो सकती है। मुझे अपने मन में तनिक शंका नहीं है कि वह वस्तु संस्कृत भाषा ही है। मेरे विचार से इस भाषा में ही हमारी जाति की बुद्धिमत्ता और वह प्रत्येक चीज जो आगे चलकर हमारे जीवन में प्रकट हुई, उसका स्त्रोत इस अद्भुत भाषा में ही विद्यमान है।” नेहरू जी ने 4 सितंबर 1959 को लोकसभा (Parliament) में कहा था “मैं संस्कृत का भारी प्रशंसक हूँ संस्कृत में प्राचीन ज्ञान एवं संस्कृति की महानता समाई हुई है. संस्कृत ही वह जड़ है जिसमें से भारत का विकास हुआ है । यदि हम जड़ से कट गए, जो हमारे लिए बहुत बुरा होगा। हम केवल सतही इंसान रह जाएंगे।”
पंडित नेहरू ने भारत में संस्कृत के योजनाबद्ध संरक्षण, विकास और विस्तार के लिए प्रभावी कदम उठाए। 1956 में उन्होंने संस्कृत के उत्थान के लिए संस्कृत आयोग का गठन किया। नेहरू जी की विचार परंपरा के अनुसरण में ही कालान्तर में, देश में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (National Sanskrit Institute) , संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति (Sanskrit Vidhyapeeth ), लाल बहादुर शास्त्री ( Lal Bahadur Shastri) केंद्रीय संस्कृत विद्यापीठ दिल्ली, महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन आदि अनेक संस्थाओं की स्थापना हुई। अनेक राज्यों में संस्कृत विश्वविद्यालय बने। भारत में विद्यालयशिक्षा, कॉलेज और विश्वविद्यालय (College and University) शिक्षा में संस्कृत को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक अपेक्षित और प्रभावी कदम उठाए गए। राजस्थान प्रदेश में संस्कृतशिक्षा का अलग से पूरा कैडर और मंत्रालय बना। वैदिक शिक्षाबोर्ड ( Vaidik Education Board) का गठन तथा बांसवाड़ा (Banswara) में वेदविद्या पीठ स्थापना हेतु योजनाऍ बनी।
मन-वचन और कर्म की साहसपूर्ण एकता का मंत्र नेहरू जी (Nehru Jee) से सीखना चाहिए। आज जाति, संप्रदाय और क्षेत्र की राजनीति में प्राथमिकताएँ बदल गई हैं। केवल वोटों के हानि-लाभ से प्रेरित इस पतित परिवेश में, ए.एम.यू. (AMU) जैसी संस्था में जाकर भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत और अपने पूर्वजों के प्रति स्वाभिमान की अभिव्यक्ति करने का साहस क्या कोई आज का राजनेता कर सकता है ? विचार करें।
प्रो. नीरज शर्मा
अध्यक्ष, संस्कृत विभाग,
मो.ला.सु. विश्वविद्यालय, उदयपुर
साभार संदर्भ-
द डिस्कवरी ऑफ इंडिया (सेंटेनरी एडिशन) ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, दिल्ली, 1985, www.archives.org
गांधी नेहरू और संस्कृत : देवेंद्र स्वरूप, www.bharatiyadharohar.com
https://sites.google.com/site/rsrshares/home/nehru-amu-convocation-speech-24-jan-1948
Modern Methods of Teaching Sanskrit : BelaRaniSharma, https://books.google.co.in/books