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क्रान्तिकेसरी चन्द्रशेखर आजाद

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क्रान्तिकेसरी चन्द्रशेखर आजाद

Chandra Shekhar Azad

स्वतन्त्रता संग्राम  के इतिहास में  भारतमात के सपूत चन्द्रशेखर आजाद का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है । उनका जन्म मध्यप्रदेश के अलीराजपुर (झाबुआ)  जिले के भाबरा नामक गाँव में २३ जुलाई सन् १९०६ ईस्वी को हुआ था । वर्तमान में इस गाँव को चन्द्रशेखर आजाद नगर के नाम से जाना जाता है । इनके पिता पं.  सीताराम तिवारी  तथा माता मूलतः उत्तरप्रदेश के उन्नाव  जिले के बदरका गाँव के निवासी थे । संवत् १९६३ में भीषण अकाल पडने के कारण वे  अपना पैतृक गाँव छोडकर मध्यप्रदेश के अलीराजपुर चले आये तथा नौकरी करने लगे । वे वहीं भाबरा गाँव में बस गये । यह क्षेत्रआज भी मध्यप्रदेश का आदिवासी  बहुल क्षेत्र माना जाता है । चन्द्रशेखर आदिवासियों और भीलों के बच्चों के साथ पले बढे, उन्हीं के साथ धनुष – बाण चलाना सीखा तथा उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी भाबरा में ही हुयी । इनके पिता इमानदार, साहसी, स्वाभिमानी, कर्तव्यनिष्ठ तथा राष्ट्रपारायण व्यक्ति थे । आजाद को यह सब गुण अपने पिता से  विरासत के रूप में मिले थे । आजाद बचपन से ही निडर साहसी और राष्ट्रभक्त थे । संस्कृत और संस्कृति में  अनन्य अनुराग होने के कारण माता –पिता ने उन्हें संस्कृत विद्या का अध्ययन करने के लिये कशी भेजा । उन दिनों काशिक राजकीय संस्कृत महाविद्यालय भारतीय तथा पाश्चात्त्य विद्याओं के अध्ययन  का विश्व प्रसिद्ध स्थल था । इसमें राष्ट्र के प्रकाण्ड विद्वान्  तो शिक्षा देते ही थे पाश्चात्य देशों के अनेक मनीषी भी यहाँ अनुसंधान और अध्यापन में संलग्न थे, इसलिये देश –विदेश के विद्यार्थी इस महाविद्यालय में अध्ययन करना अपना सौभाग्य मानते थे । चन्द्रशेखर आजाद ने इस महाविद्यालय में प्रवेश लेकर  अपनी ज्ञान की पिपासा को शान्त करने में संलग्न हुये ही थे , उसी समय गाँधी जी के असहयोग अन्दोलन से प्रभावित होकर वे मन्मथनाथ गुप्त तथा प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और  स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पडे । जलियांवाला बाग काण्ड  से उद्विग्न होकर उन्होंने   छात्रों के साथ  मिलकर आन्दोलन किया और पहली बार पकडे गये । उनकी इस गिरफ्तारी का उल्लेख  पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में  करते हुये लिखा है –

“ ऐसे ही कायदे (कानून ) तोडने के लिये  एक छोटे से लडके को, जिसकी उम्र १४  या १५  साल की थी और जो अपने को आजाद कहता था, बेंत की सजा दी गयी। वह नंगा किया गया और बेंत की टिकटी से बाँध दिया गया। जैसे जैसे बेंत उस पर पडते थे और  उसकी चमडी उधेड डालते थे , वह “ भारत माता की जय “ चिल्लाता था । हर बेंत के साथ वह लडका तब तक यही नारा लगाता रहा, जब तक वह बेहोश न हो गया । बाद में वही लडका उत्तर भारत के क्रान्तिकारी कार्यों के दल का बडा नेता बना “ (मेरी कहानी, जवाहरलाल नेहरू, अनुवाद – हरिभाऊ उपाध्याय, पृ. ७३-७४)।

 चन्द्रशेखर आजाद की इस पहली गिरफ्तारी थी, जिसने उन्हें “आजाद “ के नाम से प्रसिद्ध कर दिया ।वे जनता में आजाद के नाम से प्रसुद्ध थे। उनके क्रान्तिकारी साथी उन्हें “पण्डित जी” कह कर सम्बोधित करते थे । उनकी अमरगाथा को गाते हुये संस्कृत कवियों ने  विपुल लेखन किया तथा आज भी कर रहे हैं ।  मदन लाल वर्मा ने उन पर “आजादचन्द्रशेखरो वीरवरः”  नामक नाटक की रचना की, स्वामी रामभद्राचार्य ने खण्डकाव्य विधा  में “आजादचन्द्रशेखरचरितम्” लिख कर आजाद का गुणगान किया तो  अयोध्या निवसी देवी सहाय पाण्डेय “दीप” ने चन्द्रशेखर आजाद के गुणानुवाद में   ग्यारह खण्डों में सम्पूर्ण महाकाव्य ही लिख दिया ।संस्कृत में आजाद का यशोगान करने वाले  कवियों  की लम्बी कतार है। इन सभी कवियों का उपजीव्य स्वतन्त्रता संग्राम का इतिहास ही है किन्तु संस्कृतभाषा की मसृणता भाव गम्भीरता तथा सम्प्रेषणीयता के कारण  चन्द्रशेखर आजाद का चरित्र यहाँ वीरता की पराकाष्ठा बन गया  है । वह राष्ट्र के अनन्य उपासक और भारत माता के दूध का कर्ज चुकाने वाले महावीर के रूप में अंकित हैं । वे धर्म वीर भी थे , दया वीर भी थे तथा युद्ध वीर भी थे । राष्ट्र को गोरों  की परतन्त्रता से मुक्त कराना ही  उनके जीवन का लक्ष्य था ।

स्वामी रामभद्राचार्य  चन्द्रशेखर आजाद की वीरता को अपनी कविता का स्वर देते हैं , आजाद का स्वर उनकी कविता का स्वर बनकर संस्कृत की स्वर लहरियों में गूँजता हुआ युवाओं में राष्ट्रभक्ति का जोश भर देता है । पहली बार  गिरफ्तार बालक चन्द्रशेखर को जब पुलिस जब  न्यायाधीश के सम्मुख उपस्थित करती है तो न्यायाधीश उनसे पूँछता है –

क्व ते गृहं, का च तवाऽस्ति माता,  कस्ते पिता,  किं च तवाऽभिधानम् ।

के ते सहायाः , व्यसनं च किन्ते, क्रान्तौ किमिच्छन् समभूः प्रवृत्तः ॥१२४ ॥

न्यायाधीश ने  आजाद से पूँछा – तुम्हारा घर कहाँ है?  तुम्हारे माता पिता का नाम क्या है ? तुम्हारे सहायक कौन हैं ? तुम्हारा व्यसन क्या है और तुम क्या चाह कर ऐसा काम करते हो ?

आजाद ने निर्भीक मुद्रा में उत्तर दिया –

कारा मेऽस्ति गृहं च भारतमही माता मनोज्ञा मम

श्रीरामोऽस्ति पिता समद्म्यजरिपून्नाजादनामास्म्यतः ।

त्वन्नाशो व्यसनं खलोद्धृतिरतौ बाहू सहायीकृतौ

क्रान्तिर्नोऽवनिमिप्सुकैरहरहो युष्माभिराकल्पिता ॥ १२६॥

कारागार मेरा घर है  । भारतभूमि ही मेरी सुन्दर माता है । श्री राम मेरे पिता हैं । मैं शत्रुओं का भक्षण करता हूँ । मेरा नम आजाद है ,अँग्रेजों को उखाड फेकने में तत्पर मेरी दोनो भुजायें ही  मेरी सहायक हैं  तथा भारत भूमि को अपनाने के इच्छुक तुम अँग्रेजों को उखाड फेकने के लिये ही मैं क्रान्ति के लिये उतरा हूँ । यहाँ “आजाद” शब्द विशेष अर्थ में प्रयुक्त हुआ है – अजा इव रिपवः आँग्लशासकाः । तान् अजान् अत्ति इति अजादः । आ समन्तात् सम्यक्तया अजादः इति आजादः ।  संस्कृत में अज  शब्द का अर्थ बकरा होता है तथा अद् धातु भक्षण के अर्थ में प्रयुक्त होती है। इन दोनो शब्दों को मिलाने से आजाद शब्द बना है अर्थात् बकरे रूपी अँग्रेज शत्रुओं का अच्छी तरह भक्षण करने वाला।

 चन्द्रशेखर आजाद के इस उत्तर से क्षुब्ध न्यायाधीश ने  उसे पन्द्रह बेंत मारने की सजा सुनायी। न्यायाधिपति का आदेश पाकर निर्दय  सिपाही उस कोमल बालक पर कोडे बरसाने लगा । उस दृश्य की कल्पनामात्र से संस्कृत का कवि रो पडता है –

अहो दुरन्तां च परिस्थितिं तां स्मृत्वा विदीर्णा वसुधा कथं नो ।

निर्दोषबालं च यदा प्रहर्तुं प्रसह्य पापा निगडैर्बबन्धुः ॥ १२९ ॥

जब इन पापियों ने  बेंत बरसाने के लिये उस बालक को बाँधा , उस दुरन्त परिस्थिति का स्मरण करके पृथ्वी क्यों नहीं फट गयी  ? काराध्यक्ष के आदेश  से क्रूर  सिपाही तब तक उस बालक को पीटता रहा जब तक वह बेहोश नहीं हो गया । प्रत्येक कोडे के प्रहार पर आजाद भारत माता  का जयकारा लगाते हुये सिंह गर्जना करते रहे  और कहते रहे – अरे दुष्ट शत्रुओ ! तुम बेत से मेरी चमडी छील डालो, मुझे मार डालो किन्तु मै अपना व्रत नहीं छोडूगा, दूसरे जन्म में भी इस वैर का बदला लूँगा । रक्तरंजित आजाद को बाहर आता देखकर जनता उनको आँसुओं की  धारा से नहला कर उन पर फूल बरसाने लगी ।

 इस घटना ने  चन्द्रशेखर आजाद को पूर्णतः क्रान्तिकारी बना दिया । उन्होंने  सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी का गठन किया।

काकोरी काण्ड आदि अनेक क्रान्तिकारी घटनाओं से आजाद ने अँग्रेजों की नींद उडा दी। कुछ दिन के लिये  चन्द्रशेखर आजाद  ने झाँसी को अपना केन्द्र बनाया । वहाँ  गुप्त रूप से क्रान्तिकारियों को निशानेबाजी सिखाते रहे तथा छ्द्म वेश धारण कर  बच्चों को शिक्षा देते रहे । भगत सिंह और राजगुरु के  साथ मिल कर १७ दिसम्बर, १९२८ को लाहौर में साण्डर्स का वध करके उन्होंने    लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लिया ।बटुकेश्वरदत्त तथा भगत सिंह ने आजाद के ही नेतृत्व में ८ अप्रैल, १९२९ को  केन्द्रीय असेम्बली में बम फोडा ।  आजाद की क्रान्ति से अँग्रेज  शासक काँपने लगे । वे सम्हल नहीं पाते थे और आजाद दूसरी घटना को अंजाम दे देते थे ।

 पं. मोती लाल नेहरू, पुरुषोत्तम दास टण्डन , कमला नेहरू आदि जैसे उस समय के महनीय व्यक्तित्व आजाद के प्रशंसक थे । भगत सिंह , राजगुरु व सुखदेव की फाँसी की सजा  कम करने के लिये वे तमाम उपाय कर रहे थे । इसके लिये वे जवाहर लाल नेहरू से भी मिले । उनसे उन्होंने  इन तीनों क्रान्तिकारियों की सजा कम करवाने की बात कही । २७ फरवरी, १९३१ को आजाद  प्रयागराज ( इलाहाबाद ) के अल्फ्रेड पार्क (अब चन्द्रशेखर आजाद पार्क ) में अपने क्रान्तिकारी साथी सुखदेव राज के साथ आगे की योजनाओं के बारे में  चर्चा कर ही रहे थे  कि पुलिस ने उन्हें घेर  लिया । दोनो ओर से भयंकर गोली – बारी हुयी । आजाद भयंकर रुद्र के समान पुलिस को मथने लगे, उनके रौद्र ताण्डव  से भयभीत  शत्रु इधर उधर भागने लगे । चन्द्रशेखर आजाद की शस्त्र संचालन की कला तथा फुर्ती को देखकर पुलिस  अधिकारी आश्चर्य चकित थे । चारो ओर रक्त की धारा बह चली । पुलिस दल के शवोम् से वह स्थल भर गया किन्तु  भारी पुलिस बल के सामने  अकेले लडते लडते आजाद की गोलियाँ खत्म हो गयीं । जब उन्होंने देखा कि अब उनके पास  एक ही गोली बची है तो उन्होंने उसी से अपने को समाप्त कर लिया तथा भारत माता की गोद में यश के धवल बिछौने पर अमरत्व की नींद में सो गये । उन्होंने देश के लिये अपना सब कुछ लुटा दिया ।  उनकी लोकप्रियता से भयभीत अँग्रेजों ने बिना किसी को सूचित किये रसूलाबाद श्मशान घाट पर उनका अन्तिम संस्कार कर दिया । शासन के इस व्यवहार से जन मानस में आक्रोश व्याप्त हो उठा । पुरुषोत्तम दास टण्डन जैसे मनस्वी भी इस पीडा से आहत हो उठे । अन्ततः दूसरे दिन पुरुषोत्तम दास टण्डन युवकों  के जुलूस के साथ श्मशान घाट जाकर आजाद के अस्थियों को चुना और विधिपूर्वक उनका विसर्जन किया। इससे जनता  का आक्रोश कुछ शान्त हुआ। प्रयागराज में स्थित चन्द्रशेखर आजाद पार्क में आज भी वह वृक्ष विद्यमान है जिसकी आड से चन्द्रशेखर आजाद अँग्रेजों से लडते हुये वीरगति को प्राप्त हुये । आज भी जनता उस स्थल पर जाकर वहाँ की धूल श्रद्धा पूर्वक अपने माथे पर लगा कर अपने को धन्य मानती है  ।

क्रान्ति के मतवाले चन्द्रशेखर आजाद  का नाम  इस धरती पर सदा गूँजता रहेगा, उनके क्रान्ति गीत  सदा गाये जाते रहेंगे । उनके बलिदान से युवाओं में नव शक्ति का संचार हुआ, सुप्त भारतीय जनता स्वतन्त्रता के लिये उन्मुख हुयी और स्वयं चन्द्रशेखर आजाद  “आजाद” नाम से विश्वविश्रुत हो गये । हमें आज  स्वतन्त्र भारत में रहने का सौभाग्य इन्हीं वीरों के बलिदान से ही मिला है । हम चन्द्रशेखर आजाद को उनके जन्म दिन पर शत शत नमन करते हुये उन्हें  प्रणामाँजलि समर्पित करते हैं ।

डा. रमाकान्त पाण्डेय

आचार्य, साहित्य विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर – परिसर,

त्रिवेणी नगर , जयपुर – ३०२   ०१८

Comments (4)

  1. Dr seema agrawal

    वीर रस से ओतप्रोत, अत्यंत हृदयस्पर्शी, सराहनीय लेखन
    आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आजाद की यादों को स्मरण करना एवं संस्कृत साहित्य के साथ उसको संबंधित करने वाला यह प्रयास सराहनीय है

  2. Jagdish Bishnoi

    उन का निशाना अचूक था आजाद जी का तथा उन के द्वारा किये गये कार्य पर मुझे गर्व है

  3. PRAVEEN PANDYA

    चंद्रशेखर के बारे में यह जानकारी इसी आलेख से मिली कि वह पारंपरिक संस्कृत महाविद्यालय के विद्यार्थी थे। चंद्रशेखर पर रचनाओं की सूचना उपयोगी है। उनके छात्र जीवन एवं महाविद्यालय के अध्यापकों के बारे में लेखक जानकारी जुटा दें या जुटा सकें तो वह महत्त्वपूर्ण होगी।

  4. गौरव पुरोहित

    ह्रदय भाव विभोर,राष्ट्रहित के लिय उत्साह,गदगद,करुणा,अत्याचारो के प्रति क्रोध व भारत के अमर दीप आजाद जी के प्रति सम्मान आदि अनेक भावो से भर उठा।🙏🏻नमन।

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