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भारतीय संस्कृति की अग्रध्वजा – पतित-पावनी गङ्गा

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भारतीय संस्कृति की अग्रध्वजा – पतित-पावनी गङ्गा


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आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर

भारत भूमि अपने विशालकाय भौगोलिक उपादानों से शस्य-श्यामला रूपाच्छादित है। इस रूप का आधान कराने में नदियों की महती भूमिका है। नदियों में भी गङ्गा सर्वाधिक पवित्र नदी के रूप में हमारे मानस में विराजमान है। गङ्गा से पृथक् होकर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती है। गङ्गा सहस्रों वर्षों से अविरल प्रवहित, भारतीय संस्कृति को युगों से गढ़ती हुई, सभ्यताओं और संस्कृतियों को रूप देती हुई, दुःख-सुख की साक्षी के रूप में हमारी सम्वेदनाओं की संवाहिका रही है। हमारी श्रद्धा, विश्वास तथा आस्था ने अपने तट पर वासित अध्यात्म एवं योग के अन्वेषियों को आत्म एवं जगत् के रहस्यों की एवं ब्रह्मज्ञान की अनुभूति कराई है। एतदर्थ यह मोक्षदायिनी संज्ञा से विभूषित हुई है। दूषित मन, पानी और अपराधी मन भी इसके सान्निध्य मात्र से पावन, निर्मल और शुद्ध हुए हैं – इसी कारण इसे पतित-पावनी कहा गया है। संस्कृत के आदि ग्रन्थ ऋग्वेद से लेकर अद्यावधिपर्यन्त संस्कृत कवियों ने गङ्गा के माहात्म्य का जो गान किया है वह इसकी महत्ता तथा हमारी आस्था का प्रतिमान ही कहा जा सकता है।

संस्कृत साहित्य में गङ्गा -

भारत भूमि अपने विशालकाय भौगोलिक उपादानों से शस्य-श्यामला रूपाच्छादित है। इस रूप का आधान कराने में नदियों की महती भूमिका है। नदियों में भी गङ्गा सर्वाधिक पवित्र नदी के रूप में हमारे मानस में विराजमान है। गङ्गा से पृथक् होकर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती है। गङ्गा सहस्रों वर्षों से अविरल प्रवहित, भारतीय संस्कृति को युगों से गढ़ती हुई, सभ्यताओं और संस्कृतियों को रूप देती हुई, दुःख-सुख की साक्षी के रूप में हमारी सम्वेदनाओं की संवाहिका रही है। हमारी श्रद्धा, विश्वास तथा आस्था ने अपने तट पर वासित अध्यात्म एवं योग के अन्वेषियों को आत्म एवं जगत् के रहस्यों की एवं ब्रह्मज्ञान की अनुभूति कराई है। एतदर्थ यह मोक्षदायिनी संज्ञा से विभूषित हुई है। दूषित मन, पानी और अपराधी मन भी इसके सान्निध्य मात्र से पावन, निर्मल और शुद्ध हुए हैं – इसी कारण इसे पतित-पावनी कहा गया है। संस्कृत के आदि ग्रन्थ ऋग्वेद से लेकर अद्यावधिपर्यन्त संस्कृत कवियों ने गङ्गा के माहात्म्य का जो गान किया है वह इसकी महत्ता तथा हमारी आस्था का प्रतिमान ही कहा जा सकता है।

गङ्गाख्यं यत्पुण्यतमं पृथिव्यामागतं शिवे।

गां गतेति ततो गङ्गा नाम तस्या बभूव ह।।

– स्कन्दपुराण-केदारखण्ड 2/1-2

परम पवित्र ‘गंगा’ जलरूप में परिणत हो भूमि पर अवतीर्ण हुई है। अतः गङ्गा नाम से प्रसिद्ध हुई।

          तीन धाराओं से तीनों लोकों में गमन करने के कारण उस धारा का नाम ‘त्रिपथगा’ पड़ा। स्मरणमात्र से यह पापनाशिनी मानी गयी है। गङ्गा को सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थल माना गया है और नदियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है –

तीर्थानां परमं तीर्थं नदीनां परमा नदी।

गङ्गा का भौतिक तथा आध्यात्मिक दृष्टि से अद्भुत महत्त्व है। भौतिक दृष्टि से गङ्गा नदी एक विशाल नदी है, जिस पर सहस्रों बाँध बने हैं तथा असंख्य कृषि-भू-भाग सिंचित होता है और आध्यात्मिक दृष्टि से गङ्गा नदी को मोक्षदा कहा गया है। ‘तारयतीति तीर्थः’ जो भवसागर से पार करा दे वही तीर्थ है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में गङ्गा के तीर्थत्व की व्याख्या करते हुए कहा गया –

तस्य संस्पर्शनात्पूतं तीर्थं च भुवि भारते।

तस्यैव पादरजसा सद्यः पूता वसुन्धरा।।

पादोदकस्थानमिदं तीर्थमेव भवेद ध्रुवम्।।

– ब्रह्मवैवर्तपुराण, 10/48

गङ्गा नदी अपने जल से सम्पूर्ण भूतल को पवित्र कर देती है तथा उसके पादोदक स्थान निश्चित ही तीर्थ-स्थल बन जाते हैं – सर्वपापहरणी माँ भगवती गङ्गा को भगवान् विष्णु के परमपद से उत्पन्न होने के कारण विष्णुपदी भी कहा जाता है –

निर्गता विष्णु पादाब्जात्तेन विष्णुपदी स्मृता।।

– ब्रह्मवैवर्तपुराणं-11/141

अग्निपुराण में कहा गया है कि इस संसार में जो मनुष्य भगवती भागीरथी माँ गङ्गा का दर्शन, स्पर्श, जलपान तथा गङ्गा नामोच्चारण करता है, वह मनुष्य अपनी सैंकड़ों पीढ़ियों को पवित्र कर देता है –

दर्शनात्स्पर्शनात्पानात्तथा गंगेति कीर्तनात्।

पुनाति पुण्यं पुरुषाश्शतशोऽथ सहस्रशः।।

– अग्निपुराण, 110/6

रामायण में भी गङ्गा नदी से प्रार्थना करते हुए राम कहते हैं – विष्णु के चरणों से उत्पन्न, श्री शंकर के सिर पर विराजमान तथा सम्पूर्ण पापों को हरने वाला गङ्गाजल मुझको पवित्र कर दे।

          महाभारत के वन पर्व में कहा गया है कि जिस-जिस देश में गङ्गा बहती है, वही उत्तम देश है और वहीं तपोवन है गङ्गा नदी के समीप जितने भी स्थान हैं उन सबको सिद्ध क्षेत्र जानना चाहिए।

यत्र गङ्गा महाराज स देशस्तत् तपोवनम्।

सिद्धिक्षेत्र च तज्ज्ञेयं गंगातीरसमाश्रितम्।।

– महाभारत, वनपर्व, 54/94

आचार्य शंकर ने ‘श्रीगङ्गास्तोत्र’ की रचना की। इस स्तोत्र के माध्यम से उन्होंने गङ्गा नदी के माहात्म्य का कथन किया है तथा गङ्गा के प्रति अपने उत्तरदायित्व का पुण्य स्मरण किया है।

तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम्।

मातर्गंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः।।

– श्रीगंगास्तोत्रम्, 4

हे देवि! जिसने तुम्हारा जल पी लिया, अवश्य ही उसने परमपद पा लिया। हे माता गंगे! जो तुम्हारी भक्ति करता है उसको यमराज भी नहीं देख सकता  अर्थात् तुम्हारे भक्तगण वैकुण्ठ में ही जाते हैं।

          पूरे स्तोत्र में गंगाजल की पावनता प्रवहित होती हुई सी प्रतीत होती है।

          महाकवि कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य में गङ्गा-यमुना के संगम के वर्णन में जो मालोपमा गूँथी है उसकी शोभा वस्तुतः हृदयावर्जक है।

क्वचित्प्रभालेपिभिरिन्द्रनीलैर्मुक्तामयी यष्टिरिवानुविद्धा।

अन्यत्र माला सितपंकजानामिन्दीवरैरुत्खचितान्तरेव।।

– रघुवंशम् 13/54

राम गंगा-यमुना के संगम की छटा प्रदर्शित करते हुए सीता को कहते हैं –

          कहीं तो यह देदीप्यमान इन्द्रनील मणियों से गुँथी हुई माला मोतियों की माला के समान प्रतीत होती है। और कहीं नीले तथा श्वेतकमलों की मिली-जुली माला के समान प्रतीत होती है।

क्वचित्प्रभा चान्द्रमसी तमोभिश्च्छायाविलीनैः शबलीकृतेव।

अन्यत्र शुभ्रा शरदभ्रलेखा रन्ध्रेष्विवालक्ष्यनभः प्रदेशाः।।

          कहीं-कहीं यह वृक्ष के नीचे बिखरी उस चाँदनी के समान प्रतीत होती है जहाँ बीच-बीच में पत्तों की छाया पड़ी हो, कहीं-कहीं पर शरद् ऋतु की शुभ्र अभ्रलेखा के समान जान पड़ती है, जिसके बीच-बीच में नीला आकाश झाँक रहा हो।

          पण्डितराज जगन्नाथ का गङ्गालहरीस्तोत्र तो सर्वाधिक प्रसिद्ध है। कवि ने गङ्गा-महिमा गान करते हुए अपना हृदय ही उंडेल कर रख दिया है –

समृद्धं सौभाग्यं सकलवसुधायाः किमपि तत्

महैश्वर्यं लीलाजनित जगतः खण्डपरशोः।

श्रुतीनां सर्वस्वं सुकृतमथ मूर्तं सुमनसां

सुधासौन्दर्यं ते सलिलमशिवं नः शमयतु।।

हे माँ! महेश्वर शिव की लीला-जनित इस सम्पूर्ण वसुधा की आप ही समृद्धि और सौभाग्य हो। वेदों का सर्वस्व सारतत्त्व भी आप हो, मूर्तिमान दिव्यता का सौन्दर्य-सुधायुक्त आपका जल, हमारे सारे अमंगल का शमनकारी हो।

          कवि कहते हैं कि आपकी दृष्टिमात्र से ही हृदय की दुर्वासनायें और दरिद्रों के दैन्य शीघ्र ही दूर हो जाते हैं, राग और अविद्या के गुल्म आपके गुरुसम अपार प्रवाह की दीक्षा से समूल नष्ट हो जायें ओर हमें अतुलनीय श्रेय की प्राप्ति हो।

          पण्डितराज ने गङ्गा की त्रैलोक्यातिशायी महिमा का गान करते हुए उसके तापत्रयहारी रूप को रेखांकित किया है –

स्मृतिं याता पुंसामकृतसुकृतानामपि च या,

हरत्यन्तस्तन्द्रां तिमिरमिव चण्डांशु सरणिः।

इयं सा ते मूर्तिः सकलसुरसंसेव्यसलिल

ममान्तः सन्तापं त्रिविधमपि पापं च हरताम्।।

सूर्यरश्मियों की उपस्थिति मात्र से ही जैसे तम का नाश हो जाता है, आपके स्मरणमात्र से ही पुण्यहीनों की भी कुण्ठाओं का शमन हो जाता है। दिव्यात्माओं द्वारा भी अभिलषित आपका पावन जल मेरे त्रिविध ताप को दूर कर दे।

          ऐसी स्तुति गङ्गा को केवल एक नदी रूप में ही नहीं अपितु माता के रूप में उदात्त पीठिका पर प्रतिष्ठापित करती है। स्थूल मल के साथ मनोगत मल-मालिन्य की भी निवारिका गङ्गा है- यह कवि-भाव वस्तुतः हमें आन्दोलित करता है। आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आध्यात्मिक तापों का शमन करने वाली हमारी गङ्गा-जननी हम-सभी की वन्द्या है।

          आधुनिक संस्कृत महाकाव्य ‘रक्षत गङ्गाम्’ भी गङ्गा के स्वरूप का सुन्दर उद्भव एवं विकास प्रस्तुत करता है। डॉ. कमला पाण्डेय का यह महाकाव्य 11 सर्गों में तथा पाँच खण्डों में निबद्ध है। इस महाकाव्य में उत्पत्तिखण्ड के अन्तर्गत गङ्गा के उत्पत्तिविषयक पौराणिक तथा आधुनिक मतों का सन्निवेश है। द्वितीय खण्ड यात्रा खण्ड है। तृतीय से अष्टम सर्ग पर्यन्त गङ्गा के गोमुख से निकलकर देवभूमि हिमालय से होते हुए सागर-पर्यन्त प्रवाह का भौगोलिक वर्णन है। गङ्गा की सहायक नदियों अलकनन्दा, भागीरथी, मंदाकिनी इत्यादि का सुन्दर निरूपण इस महाकाव्य की शोभा का सम्वर्धन करता है।

          अध्यात्म खण्ड में डॉ. कमला पाण्डेय ने गङ्गा के अवतरण और भगीरथ आदि का दर्शनानुसारी विवेचन किया है। अन्तिम खण्ड में प्रदूषण तथा उसके निवारण के उपायों पर चर्चा की गई है।

          प्रो. आर.सी. शर्मा ने ‘रक्षत गङ्गाम्’ महाकाव्य पर महत्त्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा –

Rakshata Gangam not only stands to save ganga but it is really a call to save humanity through protecting environment, health and the people, flora and fauna and the agriculture yield. The book is not just a composition of seven hundred excellent verses in Sanskrit, but it is a vision for future, an example to shape a better society.

‘प्रकृति का मानवीकरण’ संस्कृत कवियों की चिन्तन-अवधारणा का केन्द्रबिन्दु रहा है। गङ्गा को भी उन्होंने एक दिव्य अवतरण तथा माता के समान संरक्षिका के रूप में शिरोधार्य किया है।

डॉ. सरोज कौशल

आचार्य, संस्कृत-विभाग,

जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर

Comments (35)

  1. RAMAKANTMR PANDEY

    ज्ञानप्रद आलेख।

    1. Saroj Kaushal

      हार्दिक धन्यवाद

  2. RAMAKANTMR PANDEY

    महत्त्वपूर्ण जानकारी ।

    1. Dr.Jaya Bhandari

      very very informative, inspirational very well written………..Namami Gange.

    2. Maina

      Very effective and knowledge
      Thought🙏🙏

  3. Jagdish

    Best Blog

  4. Jagdish

    We all are satisfied in this

  5. Dr.Raju

    प्रो सरोज कौशल मैैडम द्वारा लिखा गया ब्लॉग अति उत्तम एवं ज्ञानवर्धक है

    1. Dr. Taresh kumar sharma

      अतिसुन्दर आलेख l पतित-पावनी भागीरथी का सुन्दर प्रवाह वाचिक प्रवाह से प्रवाहित है l अभिनन्दनीय🙏💕

    2. Monika Sharma

      Amazingly deep explanation.

  6. Dr kailash kaushal

    देव सरिता गंगा के पौराणिक उत्स से ले कर अद्यावथि उसकी प्रवहमानता एवं महत्ता का सांगोपांग विवेचन, मोक्ष दायिनी गंगा एक नदी मात्र ही नहीं है, यह समूची संस्कृति है, यह हमारी समृद्ध परंपराओं का यशस्वी आख्यान है, जिसे प्रस्तुत विवेचन में सहेजा गया है, लेखिका को साधुवाद, गंगा की अविरल धारा सदृश यह लेखनी भी अविराम करती रहे।

    1. Saroj Kaushal

      गंगा की धारा जिस प्रकार अविरल प्रवहित होती है उसी प्रकार हमारी संस्कृति भी निरन्तर उत्कर्ष की ओर अग्रसर होती रहे , यही राष्ट्रीय मंत्र बने।

  7. Pawan k sethhi

    Well researched, quite enlightening and very well articulated. Congratulations for a nice piece of creative and excellent words on Gamga maiya.

    1. Saroj Kaushal

      Thank u very much, there is a limit in blog otherwise we can fully quote ganga lahri of Pandit Raj Jagnnath.

  8. Purushottam soni

    अति सुन्दर लेख।

    1. Sharmila Suranaप

      ज्ञानप्रद लेख, गंगा मैया के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मैडम के द्वारा दी गई अति उत्तम है 🙏🙏

  9. Divya

    ज्ञानवर्धक ब्लॉग …..गंगा नदी के विषय में कई नई जानकारियां मिलीं।

  10. डाॅ कमला चौधरी

    अति उत्तम एवं ज्ञानवर्धक मैम
    आपको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 🙏🙏

  11. Dr. Ritu Johri

    Very nice depicted.
    Wonderful
    Thanks

    1. Saroj Kaushal

      आपकी कलाप्रियता से यह आलेख और भी अधिक सुशोभित होगा।
      ललित कला तथा साहित्य परस्पर पूरक ही हैं।

  12. Bhopal

    But brahmins didn’t protected the ganga intested of it they had destroyed by population explosion

  13. Bhopal

    In future ganga will vanish due to climate change due to population explosion

  14. Dhirendra chaturvedi

    Very nice information about MAA Ganga

  15. Akshay surana

    पतित पावनी गंगा मैया के वैशिष्ट्य का संस्कृत साहित्य केआलोक में सारगर्भित वर्णन महोदया 🙏🙏

  16. Vibha Aggarwal

    गङ्गा नदी के विषय में उत्तम शोधात्मक जानकारी प्रदान करने के लिए आपके प्रति आभार 🙏

    1. Saroj Kaushal

      धन्यवाद महोदया, गंगा नदी के विषय में जितना अध्ययन करते हैं आस्था का स्तर पूर्वापेक्षा सम्वर्धित हो जाता है।

  17. डॉ. ओम प्रकाश टा क

    गंगा नदी पर इतना सुगठित और चिंतन परक आलेख.पढकर धन्य हुआ.गंगा माँ मे धर्म और अध्यात्म की रस धार बहती है.विदुषी सरोज कौशल जी को कोटिशः बधाई और अकादमी के प्रति हार्दिक आभार.

    1. Saroj Kaushal

      भारतीय संस्कृति की महत्त्वपूर्ण अवधारणा पुरुषार्थ चतुष्टय का गंगा आधान कराती है। यदि हम सूक्ष्मेक्षिकया अनुभव करें तो यह हमें रोमांचित करता है।

  18. Mukesh jain

    आदरणीय मैडम ,आपके लेखन से सदैव ही नवीन एवं ज्ञानवर्धक तथ्यों का उद्घाटन होता है । इसके द्वारा निश्चित रूप से मातृतुल्य माँ गंगा के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु प्रेरणा प्राप्त होगी । स्कंद पुराण के उद्धरण द्वारा गंगा शब्द की व्युत्पत्ति के बारे में ज्ञान हुआ, आधुनिक संस्कृत साहित्य में भी ऐसे विषयों पर लेखन निस्संदेह प्रशंसनीय है । पर्यावरण घटकों में दैवीय स्वरूप का आधान कर उनके संरक्षण हेतु मनोवैज्ञानिक प्रेरणा प्रदान करने वाले भारतीय मनीषियों के चिंतन को कोटि कोटि वंदन ।

  19. Shubhankar Sharma

    Such intensity of knowledge, kneaded in a single blog. This is an ideal blog for neo-Indians, who may be unaware of rich Bhartiya civilisation, cultures, traditions, rivers and their importance. It also, paves a path for beginners in Sanskrit and Bhartiyatva.

  20. Pawan Kumar nagar

    सुंदर और सारगर्भित

  21. डा. प्रवीण पंड्या

    गङ्गा के मोक्षदायिनी और पतितपावनी होने का अर्थ तो यह आलेख खोलता है ही, तत्त्व चिन्तन से आधुनिकता से जन्मे पर्यावरण संरक्षण अभियान तक की व्याप्ति लिए हुए है। दो विशेषणों में पूरा गङ्गा माहात्म्य पिरो दिया है। डा कमला पाण्डेय के काव्य तक के संस्कृत साहित्य में गङ्गा की गरिमा और महिमा पर अच्छा प्रकाश डाला है।

  22. Maina

    Very useful and effective thought🙏🙏

  23. Vandana punia

    Excellent

  24. डॉ. सत्यमुदिता स्नेही, असिस्टेंट प्रोफेसर संस्कृत

    “भारतीय संस्कृति की अग्रध्वजा-पतित पावनी गंगा’ पर आपके द्वारा लिखे गए इस लेख को पढ़कर मेरे अज्ञान का नाश हुआ और मेरे भीतर ज्ञान रूपी गंगा बहने लगी आपकी इस ज्ञान गंगा में गोता लगाकर मैं अपने आप को धन्य समझती हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद मैडम। आप इसी तरह संस्कृत साहित्य के ज्ञान की गंगा अनवरत रूप से प्रवाहित करती रहे।

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