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गोर्वधन पर्व

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गोर्वधन पर्व


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आज़ादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत

गोवर्धन पर्व का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। दीपोत्सव के अगले दिन यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा  कर यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण के अलावा गौ वंश की  पूजा भी की जाती है। इस पर्व में प्रकृति के साथ हमारा सीधा संबंध भी दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथाएं हैं।

वैसे तो यह पर्व पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन बृज में इसका खास महत्व है. मथुरा में विशेष रूप से गोवर्धन पूजा होती है. इस दिन गाय के पूजन का भी बड़ा महत्व है. गोवर्धन पूजा की कहानी भगवान कृष्ण से जुड़ी हुई है. इस दिन भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव के अहंकार का ना​श किया था.

इस दिन गोवर्धन पर्वत, गोधन यानि गाय और भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है. इसके साथ ही वरुण देव, इंद्र देव और अग्नि देव आदि देवताओं की पूजा का भी विधान है. गोवर्धन पूजा में विभिन्न प्रकार के अन्न को समर्पित और वितरित किया जाता है, इसी वजह से इस उत्सव या पर्व का नाम अन्नकूट पड़ा है. इस दिन अनेक प्रकार के पकवान, मिठाई से भगवान को भोग लगाया जाता है.

गोवर्धन पूजा क्यों-

अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई. हिन्दू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन जी की अल्पना बनाकर उनका पूजन करते है. उसके बाद गिरिराज भगवान (पर्वत) को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है. इस दिन मंदिरों में अन्नकूट का उत्सव मनाया जाता है.

गोवर्धन पूजा के संबंध में एक प्रसिद्ध कहानी है। भगवान श्रीकृष्ण सभी गोपियों और ग्वालों के साथ गायों को चराने के लिए ले जाते थे। जब भगवान गोवर्धन पर्वत पर पहुँचे तो गोपियों ने 56 प्रकार के भोजन तैयार किए और गायन और नृत्य करना शुरू कर दिया। पूछने पर भगवान को पता चला कि यह भगवान इंद्र की पूजा करने के लिए किया गया था। भगवान इंद्र प्रसन्न होने पर गांव के कल्याण के लिए करेंगे। जिससे फसलों में वृद्धि होगी। भगवान कृष्ण ने उन्हें बताया, उनके पहाड़ बेहतर थे क्योंकि उन्होंने गायों को भोजन दिया था। तब बृज के लोगों ने भगवान कृष्ण के आदेश का पालन किया और गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह देखकर भगवान इंद्र क्रोधित हो गए कि जनता उनकी पूजा करने के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रही है। इसलिए, उन्होंने बादलों को गोकुल पर बारिश करने का आदेश दिया ताकि जीवन नष्ट हो जाए। यह देख सभी भयभीत हो गये और सभी भगवान कृष्ण के पास पहुँचे, और भगवान ने उन्हें गोवर्धन पर्वत की शरण में पहुँचने के लिए कहा। भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर पर्वत को उठा लिया। बृज की जनता दौड़कर गोवर्धन पर्वत के नीचे चली गई। बृजवासियों पर एक बूंद भी नहीं गिरी। यह देखकर इंद्र देव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान कृष्ण से क्षमा मांगी। सात दिनों के बाद, भगवान कृष्ण ने पहाड़ को नीचे रखा और बृज की जनता से हर साल गोवर्धन और अन्नकूट की पूजा करने को कहा। तभी से इस दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा से समृद्धि और खुशी की शुरुआत होती है। गोवर्धन की पूजा करने से धन, समृद्धि और भाग्य की प्राप्ति होती है। घर के आँगन में गोवर्धन पर्वत का अल्पना बना कर पूजा होती है। इस दिन को गाय दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन गाय की सेवा करने से शुभ फल मिलता है।

कुछ क्षेत्रों में गौ वंश को सुबह स्नान कराया जाता है और केसर, चावल, माला आदि से सजाया जाता है। गोवर्धन के त्यौहार पर गायों और बैलों को सजाया जाता है और पूजा के लिए गाय के गोबर का एक छोटा पहाड़ बनाया जाता है। गाय के गोबर पर खील, बताशे और चीनी से बने खिलौने चढ़ाए जाते हैं। मथुरा और वृंदावन में यह त्योहार बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। छप्पन भोग शाम को भगवान को अर्पित किये जाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि इस उत्सव के आयोजन और दर्शन मात्र से व्यक्ति को कभी भी भोजन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है। अन्नपूर्णा की कृपा सदैव उन पर बनी रहती है। अन्नकूट सामूहिक भोजन करने का भी दिन है। इसमें पूरे परिवार और समाज के लोग एक आम रसोई में भगवान के लिए प्रसाद तैयार करते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में लेते हैं।

ज्योतिष की दृष्टि से इस दिन मंदिर में विभिन्न प्रकार की हरी सब्जियां, अनाज और दालें आदि भेंट करने से विभिन्न ग्रहों की प्रतिकूलता अनुकूलता में बदल जाती है और जातक को विभिन्न अच्छे फल प्राप्त हो जाते हैं, भारतीय मनीषियों द्वारा ऐसे हमारे जीवन को बेहतर बनाने हेतु पर्वो के रूप में दान पुण्य और धर्म के माध्यम से जीवन को खुशनुमा बनाने के लिए विभिन्न पर्व और परंपराओं की रचना की गई है।

गोवर्धन पूजा मंत्र-

गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।

विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।

जयतु सनातन!

पंकज कुमार ओझा
आर.ए.एस.

शासन संयुक्त सचिव
कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान।

Comments (4)

  1. Mrs.Swati Agrawal

    Very good information about Govardhan Puja .Actually for the last 29 years I also used to do this puja every year as a tradition but today I learnt aboutvthe actual logic of this puja through this article.The language of this article is also very easy to understand ,knowledgable and insteresting.
    Thanks Pankaj ji for spreading sanatan Hindu dharm through your article.

    1. Mrs.Swati Agrawal

      Very good information about Govardhan puja. Actually for the last 29 years I used to do this puja every year as a tradition onlyĺ but today I learnt about the actual logic of this puja through this article. The language of this article is also very easy to understand,knowledgable and interesting.
      Thanks Pankaj ji for spreading Sanatan Hindu dharm through your articles.

  2. Bhavana Sharma

    Nice article, also useful for civil aspirant.

  3. Yogesh Kumar Sharma

    Very informative article on Sanatan Dharam and Indian Culture by putting the Goverdhan pooja festival and the popular story related to it in a very beautiful and interesting way.

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