स्वतन्त्रता का महामन्त्र ‘वन्दे मातरम्’
August 15, 2020 2020-08-15 1:09स्वतन्त्रता का महामन्त्र ‘वन्दे मातरम्’
स्वतन्त्रता का महामन्त्र ‘वन्दे मातरम्’

भारत वर्ष का राष्ट्रीय गीत है – ‘वन्दे मातरम्’। इसमें दो पद हैं – 1- वन्दे 2- मातरम्। अभिवादन करना और स्तुति करना – इन दो अर्थों में *वन्द्* (वदि) धातु का प्रयोग होता है। उत्तम पुरूष के एक वचन में ‘वन्दे’ – ऐसा क्रियापद का प्रयोग होता है। ‘मातरम्’- यह ‘मातृ’ शब्द के द्वितीया विभक्ति का एकवचन है। दोनों पदों का सामूहिक अर्थ है – मैं माता (भारत माता) को प्रणाम करता हूँ अथवा माता (मातृभूमि) की स्तुति करता हूँ।
‘वन्दे मातरम्’ ये दो शब्द देशभक्ति के भाव को जागरित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं तथा रहे हैं। इस गीत के रचयिता बंगाल के कवि बंकिम चन्द्र चटर्जी हैं। चटर्जी का जन्म 27 जून] 1838 को पश्चिम बंगाल के उत्तरी चौबीस परगना के कंठालपाड़ा, नैहाटी के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बंगाली और संस्कृत भाषा मिश्रित रूप में लिखित यह गीत यद्यपि बहुत लम्बा है, तथापि इसके प्रारम्भिक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण संस्कृत में लिखे गये दो छन्दों को सन् 1937 में भारतीय राष्ट्रिय काँग्रेस ने राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया] फलस्वरूप भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने 24 जनवरी, 1950 को इसे ‘राष्ट्रीय गीत‘ का दर्जा देने की आधिकारिक घोषणा की। भारत की संविधान सभा में घोषणा करते हुये तत्कालीन राष्ट्रपति ने कहा था कि भारत वर्ष की ऐतिहासिक स्वतंत्रता के संग्राम में ‘वन्दे मातरम्’ इस गीत ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है अतः इस गीत को राष्ट्रगान (जन-गण-मन अधिनायक जय हे) के समान आदर एवं दर्जा मिलना चाहिये। इस गीत के प्रारम्भिक दो छन्द इस प्रकार हैं-
वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयजशीतलां, शस्यश्यामलां मातरम् ।। । ।।
शुभ्रज्योत्स्ना – पुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्
सुखदां वरदां मातरम् ।। 2 ।। वन्दे मातरम्।
अर्थ – भारत माता को मैं प्रणाम करता हूँ, जो स्वच्छ जलों (से युक्त नदियों) वाली है, अच्छे अच्छे फलों (के वृक्षों) वाली है, मलयपर्वत की (चन्दन वृक्षों के स्पर्श से) शीतल वायु वाली है तथा हरीतिमा से सुशोभित है – ऐसी भारत माता को प्रणाम करता हूँ। जो धवलचन्द्रमा के प्रकाश से आनन्दित करने वाली रात्रियों से युक्त है, खिले हुये पुष्पों से युक्त वृक्षों के झुण्ड से शोभायमान है, आमोद-प्रमोद दायिनी है, मधुर संस्कृत वाणी में वार्तालाप करने वाली है, सुखदायिनी है, वरदान प्रदान करने वाली है – ऐसी भारत माता को मैं प्रणाम करता हूँ।
बांग्ला साहित्यकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने यद्यपि 1876 ई0 में ही ‘वन्दे मातरम्’ इस कविता को लिख दिया था, किन्तु सन् 1882 में देशभक्ति से ओत-प्रोत प्रथम राजनीतिक उपन्यास ‘आनन्द मठ’ का हिस्सा बना लिया था। तत्कालीन उत्तरी बंगाल (दानापुर, पूर्णिया, तिरहुत) में अंग्रेजी हुकूमत और स्थानीय राजा के जनता के प्रति विहित कुशासन के खिलाफ संन्यासियों ने विद्रोह किया था, उसी घटना से प्रेरित होकर ‘आनन्द मठ’ उपन्यास लिखा गया था, जिसमें ‘वन्दे मातरम्’ को भी शामिल किया गया, जो राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया।
सन् 1894 में बंकिम चन्द्र के निधन के पश्चात् सन् 1896 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में कवीन्द्र गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस राष्ट्रीय गीत को गाया था। कवयित्री सरला देवी चौधुरानी ने बनारस कांग्रेस अधिवेशन (1905) में इस राष्ट्रिय गीत को गाया था। सन् 1906 में नरेश चन्द्र सेन गुप्ता ने इस उपन्यास का सर्वप्रथम अंग्रेजी में अनुवाद किया था। क्रान्तिकारी लाला लाजपत राय और विपिन चन्द्र पाल ने ‘वन्दे मातरम्’ नाम से एक पत्त्रिका (Journal) का प्रकाशन शुरू किया था। सन् 1952 में हेमेन गुप्ता ने इसी उपन्यास पर आधारित ^आनन्द मठ^ नामक पहली राजनीतिक फिल्म बनाई थी। इस प्रकार राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ‘वन्दे मातरम्’ यह राष्ट्रीय गीत भारतीय जन-मानस के कण्ठ का आभूषण बन गया है।
– प्रो. श्रीकृष्ण शर्मा
सम्पादक स्वरमंगला
(राजस्थान संस्कृत अकादमी की त्रैमासिक पत्रिका )
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Dr Vaibhav Aloni
वंदे मातरम