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क्रान्तिवीर भटनागर बन्धु – लाला जयदयाल एवं हरदयाल

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क्रान्तिवीर भटनागर बन्धु – लाला जयदयाल एवं हरदयाल

राजस्थान के स्वतन्त्रता सेनानियों में लाला जयदयाल एवं लाला हरदयाल भटनागर बन्धु के नाम से जाने जाते हैं। आप राजस्थान के भरतपुर जिले में कामाँ के निवासी थे। एक ही परिवार में जन्में लाला जयदयाल एवं लाला हरदयाल ने बचपन से ही क्रान्ति का पाठ पढ़ा। देश की आजादी का स्वप्न देखा और युवावस्था के प्रारम्भ होने के साथ ही ब्रिटिशों के विरुद्ध विद्रोह की बात सोचने लगे। आपने प्रारम्भ में लगभग बारह तेरह वर्ष तक इस उद्देश्य से व्यापक जन-जागरण किया।

            लाला जयदयाल का जन्म 4 अप्रेल 1812 ई0 को तथा लाला हरदयाल का जन्म 11 जून 1817 ई0  को हुआ था। आप उर्दू फारसी एवं अंग्रेजी व हिन्दी चारों भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे तथा लाला हरदयाल महाराव की सेना में फौजदार थे। आप दोनों देशभक्तों ने महाराव की सेना के सम्पूर्ण सैनिकों में देशरक्षा हेतु ब्रिटिशों के विरुद्ध विद्रोह का पाठ पढ़ाया।

            कोटा के पोलीटिकल एजेन्ट मि. बर्टन नीमच पर अधिकार करने के बाद जब 12 अक्टूबर 1857 को कोटा वापस लौटा, तो उसे भटनागर बन्धुओं के क्रान्तिविषयक कार्यों की भनक लगी। उसने ब्रिटिश सरकार को सलाह दी कि महाराव रामसिंह एवं उनके सेनानायकों को दण्डित किया जाए। बर्टन की इस सलाह की प्रतिक्रिया के रूप में रिसालदार मेहराबखान ने अपने क्रान्तिकारी साथियों का नेतृत्व करते हुए विद्रोह की घोषणा कर दी। इस प्रकार 15 अक्टूबर 1857 को जो विद्रोह प्रारम्भ हुआ उसमें लाला जयदयाल भटनागर ने भी कोटा महाराव की एक सैनिक टुकड़ी का नेतृत्व किया था। धीरे धीरे इस सैनिक विद्रोह ने जनविद्रोह का रूप ले लिया। स्थानीय बृजलाल भवन महल में पोलीटिकल एजेण्ट मि.बर्टन, उसके दो पुत्रों एवं उसके डॉक्टर सैडलर कॉटम की हत्या कर दी गयी। मि. बर्टन का सिर काट कर उसे भाले पर लटका कर पूरे शहर में घुमाया गया। इससे खिन्न ब्रिटिश ए.जी.जी. के आदेश पर महाराव रामसिंह को नजर कैद कर दिया गया। 30 मार्च 1858 को मेजर जनरल राबर्ट्स की सेना ने कोटा पर अधिकार कर कोटा का शासन आने हाथ में ले लिया, किन्तु क्रान्तिकारी हार मानने वाले नहीं थे।

            लाला जयदयाल एवं मेहराबखान ने करौली के तत्कालीन शासक महारावल मदनपाल सिंह के सैन्य सहयोग से 31 मार्च 1858 को ही कोटा के नजरबन्द महाराव रामसिंह को मुक्त करवा लिया। इससे दोनों क्रान्तिकारियों की प्रतिष्ठा जनमानस में पूरे तौर पर घर कर गयी। व्यापक जनसहयोग प्राप्त कर लाला जयदयाल निरन्तर क्रान्ति की गतिविधियों को सक्रियता से कार्यान्वित करते रहे। ब्रिटिश सरकार ने राजद्रोह के मुकदमे में जून 1859 में मेहराब खां एवं लाला जयदयाल को मृत्युदण्ड की घोषणा की तथा 17 सितम्बर 1860 को कोटा के एजेंसी हाउस में उन्हें फाँसी दे दी गयी।

            31 मार्च 1858 को ही लाला हरदयाल ने भी कोटा शहर के कैथूनी पोल स्थान पर मेजर जनरल राबर्ट्स की सेना के मुकाबले हेतु विद्रोही क्रान्तिकारियों की सेना का नेतृत्व किया। आप अन्तिम दम तक लड़ते रहे। आपके साथ एक अन्य क्रान्तिकारी रोशन बेग भी लड़ रहे थे। उन्होंने भी प्राण पण से अंग्रेजों का डट कर मुकाबला किया किन्तु इस भयावह संघर्ष में मारे गये। रोशन बेग के साथ ही लाला हरदयाल को भी वीरगति प्राप्त हुई। भटनागर बन्धुओं का बलिदान राजस्थान के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में हमेशा अमर रहेगा।

डॉ. रामदेव साहू

(राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर)

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