राजस्थान के मुस्लिम क्रान्तिकारी
November 19, 2021 2021-11-20 10:23राजस्थान के मुस्लिम क्रान्तिकारी

Warning: Undefined array key "" in /home/gauravaca/public_html/wp-content/plugins/elementor/core/kits/manager.php on line 323
Warning: Trying to access array offset on value of type null in /home/gauravaca/public_html/wp-content/plugins/elementor/core/kits/manager.php on line 323
आजादी का अमृत महोत्सव
मेहराबखान मुहम्मद अली बेग एवं रोशन बेग
राजस्थान के मुस्लिम क्रान्तिकारियों में उल्लेखनीय रहे हैं-करौली के मेहराब खान एवं कोटा के पास सुल्तानपुर के निवासी मुहम्मद अलीबेग एवं रोशन बेग। इनमें मेहराबखान कोटा महाराज रामसिंह के यहाँ कोटा राज्य की सेना के मुख्य सैनिक पदाधिकारी थे। कोटा की जनता आपको मेहराब खाँ पठान के नाम से जानती थी। रिसालदार के खिताब से भी आप जाने जाते थे। राजस्थान में 1857 की क्रान्ति के प्रमुख क्रान्तिकारियों में आपका नाम गिना जाता है। 15 अक्टूबर 1857 को कोटा में क्रान्ति का प्रारम्भ आपके द्वारा ही किया गया तथा आप ही इस क्रान्ति के मुख्य सूत्रधार भी रहे। क्रान्तिकारियों का सफल नेतृत्व करते हुए आपने ब्रिटिश सेना को पराजित किया था। इसके साथ ही कोटा पोलीटिकल एजेन्ट मेजर बर्टन की हत्या में भी आपका ही हाथ था। आपने अपने भाले से मेजर बर्टन का सिर काट कर पूरे कोटा शहर में धुमाया था। आपकी प्रार्थना पर ही करौली महारावल ने कोटा के क्रान्तिकारी सैनिकों की वॉछित मदद की थी। उसी के परिणामस्वरूप अंग्रेजों द्वारा नजर कैद किये गये महाराव रामसिंह को मुक्त कराने में मेहराब खाँ को पूर्ण सफलता मिली थी। तुष्टिकरण की नीति अपनाते हुए अंग्रजों ने करौली नरेश मदनपाल को 17 तोपों की सलामी तथा जी.सी.आई.(ग्राण्ड कमाण्ड ऑफ इण्डिया) की उपाधि भी प्रदान की थी। लाला जयदयाल भटनागर आपके अभिन्न सहयोगी रहे तथा उनके साथ ही आपको भी 17 सितम्बर, 1860 को एजेन्सी हाउस में फॉसी दी गयी थी। आपका त्याग एवं बलिदान कोटा के इतिहास की चिरस्मरणीय अभूतपूर्व कडी है जिसके बिना कोटा के इतिहास की पूर्णता की कल्पना कदापि नहीं की जा सकती ।
दूसरे मुस्लिम क्रान्तिकारी सुल्तानपुर निवासी मुहम्मद अली बेग नीमच (म.प्र.) छावनी में घुडसवार रेजीमेन्ट में सैनिक के तौर पर सेवारत थे। उस समय नीमच छावनी का दायित्व मेवाड के पोलीटिकल एजेण्ट मि.शावर्स के पास था तथा छावनी में मुख्य सेनाधिकारी कर्नल एबाट था। 28 मई 1857 को नसीराबाद में हुए विद्रोह के विषय में सुन कर कर्नल एबाट ने सभी भारतीय सैनिकों को एकत्र किया तथा उन्हें ब्रिटिश सरकार के प्रति स्वाभिभक्ति की शपथ दिलवायी। भारतीय सैनिकों में पहले से ही असंतोष व्याप्त था। मुहम्मद अली बेग ने इस शपथ का खुला विरोध किया तथा कर्नल एबाट से कहा कि ‘‘अंग्रेजों ने अपनी शपथ भंग की है। क्या उन्होंने अवध पर अधिकार नहीं किया अतः उन्हें यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि भारतीय सैनिक अपनी शपथ को अनुपालना करेंगे। हम शपथ पालन करने के लिए बाध्य नहीं है।‘‘कर्नल एबाट बहुत नाराज हुआ उसने कडा दण्ड देने की धमकी दी। तीन दिन बाद ही 3 जून को मुहम्मद अली बेग एवं हीरासिंह के नेतृत्व में नीमच छावनी में भारतीय सैनिकों ने विद्रोह प्रारम्भ कर दिया। अंग्रेज अधिकारियों ने नीमच से भाग कर चितौड के पास डॅूगला गॉव में किसान रूँगाराम के यहॉ शरण प्राप्त की। सूचना मिलने पर मेजर शावर्स उन्हें उदयपुर ले गया। वहाँ महाराणा स्वरूप सिंह ने जगमन्दिर में उन्हें शरण प्रदान की। तत्पश्चात् मेजर शावर्स ने कोटा के पोलीटिकल एजेन्ट मि.बर्टन से सलाह की एवं कोटा की ब्रिटिश सैनिक टुकडी का सहयोग पा कर 5 जून को नीमच छावनी के भारतीय सैनिक क्रान्तिकारियों पर बुरी तरह दमनचक्र चलाया। मुहम्मद अली बेग मारे गये तथा 6 जून 1857 को शावर्स एवं बर्टन नीमच छावनी पर अधिकार कराने में सफल हो गए।
तीसरे मुस्लिम क्रान्तिकारी थे-रोशन बेग । आप भी सुल्तानपुर के निवासी थे तथा मुहम्मद अली बेग के कुटुम्ब से ही थे। आप कोटा आर्टिलरी में सेवारत थे तथा कोटा महाराव रामसिंह के अत्यन्त विश्वासपात्रों में गिने जाते थे। क्रान्तिकारियों ने आप लाला हरदयाल के सहयोगी रहे। 31 मार्च 1858 को जब मेजर जनरल राबर्ट्स की सेना क्रान्तिकारियों में दमन की कार्यवाही कर रही थी तब कोटा में कैथूनी पोल पर उसका मुकाबला करने के लिए लाला हरदयाल के साथ आपने भी क्रान्तिकारी सेना का नेतृत्व किया। इस मुकाबले में लाला हरदयाल के साथ आपको भी मृत्यु का मुख देखना पडा। राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए आपका बलिदान वस्तुतः चिरस्थायी हो गया
डॉ. रामदेव साहू
(राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर)

Search
Popular posts

Popular tags