राष्ट्रीय नाट्यशास्त्र कार्यशाला – हिंदी
November 21, 2021 2021-11-21 14:26राष्ट्रीय नाट्यशास्त्र कार्यशाला – हिंदी
भरत अथवा भरतमुति के द्वारा विरचित नाट्यशास्त्र नाट्य (नाटक एवं रंगमंच) पर सबसे विस्तृत एवं प्राचीन ग्रन्थ है। दूसरी शताब्दी ई0 पू0 संकलित नाट्यशास्त्र वास्तव में विश्वकोषीय प्रवृत्ति की एक कला है। नाट्यशास्त्र विभिन्न अनुशासित विषयों और उपविषयों जैसेः संगीतशास्त्र, सौन्दर्यशास्त्र, शिल्पशास्त्र, वास्तुशास्त्र, साहित्यशास्त्र जैसे विषयों की एक विशद श्रृंख्ला से भी संबंधित है तथा 37 अध्यायों में लगभग 6000 श्लोकों में पद्यरुप में निर्मित है। नाट्यशास्त्र की खोज उन्नीसवीं सदी में प्राप्त पाण्डुलिपियों और पाठ के बाद प्रकाशन के दौरान सौन्दर्यशास्त्र और रंगमंच के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक रही है।
नाट्यशास्त्र ने गत दो सहस्राब्दियों से भारत में परम्पराओं के प्रदर्शन और साहित्यिक कलाओं व सौन्दर्य सिद्धान्तों के लिये एक प्रामाणिक स्रोत ग्रन्थ के रुप में कार्य किया है। एक बहुलवादी दृष्टिकोण के साथ विस्तृत व्याख्यात्मक नाट्यशास्त्र ने अभ्यास और भारतीय रंगमंच की विविध धाराओं के बीच चर्चा के लिये सिद्धान्त के बीच परस्पर क्रिया की एक गतिशील प्रक्रिया को भी जन्म दिया। नाट्यशास्त्र ने ही परम्परागत रूप में निरन्तरता और परिवर्तन की एक अनूठी प्रक्रिया शुरू की है। साथ ही रंगमंच के भारतीय रूपों और क्षेत्रीय नाट्य के निर्वाह में मदद की है।
नाट्यशास्त्र ने न केवल भारत में बल्कि अन्य एशियाई देशों की नाट्य परम्पराओं में भागीदारी को सुनिश्चित किया है। नाट्यशास्त्र और क्षेत्रीय नाट्य के बीच सामंजस्य का विषय भारतीय थिएटर का एकतरफा मामला नहीं रहा है। नाट्यशास्त्र ने ही क्षेत्रीय नाट्य परम्पराओं के पुनर्गठन में भी महनीय योगदान दिया है।
नाट्यशास्त्र के प्रत्यक्ष प्रदर्शन का अध्ययन प्रदान करने की दृष्टि से रंगमंच, नाटक और इस क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों और छात्रों के लिये नाट्यशास्त्र से संबद्ध कला व इसकी समकालीन प्रासंगिकता की खोज के लिये राजस्थान कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी एवं राजस्थान संस्कृत अकादमी के संयुक्त तत्त्वावधान में पंचदिवसीय नाट्यशास्त्र कार्यशाला का आयोजन दिनांक 13 दिसम्बर से 17 दिसम्बर, 2021 तक किया जा रहा है।