सम्पादक की कलम से
विवाह दो परिवारों का मिलन है, प्रेम दो
संसारों का। विवाह लोक की अनुरक्ति है,
प्रेम लोकोत्तर शक्ति है। विवाह राग है,
प्रेम विराग है। विवाह मर्यादित सीमा रेखा
है, प्रेम आदि अनन्त का लेखा है। विवाह
अधिकार माँगने का नाम है, प्रेम सर्वस्व
न्यौछावर करने का नाम है। विवाह सात
जन्मों का सही… ..बन्धन है, प्रेम जन्म-
जन्मान्तर के बन्धन से मुक्त होने की
प्रक्रिया है। प्रेम की उल्टी रीत है, धारा है,
जो कृष्ण को समर्पित होकर राधा हो
जाती है। राधा किसी स्त्री का नाम नहीं,
प्रेम की सर्वोत्कृष्ट भाव-भाषा और
परिभाषा का नाम है।
– संजय झाला
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