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वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता:

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वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता:

Rashtreeya Ekta Diwas

 भारतीय परंपरा में राष्ट्र  सांस्कृतिक-भौगोलिक और राजनीतिक शक्ति और संप्रभुता का सर्वोच्च प्रतीक है। राष्ट्रीयता का भाव ही सनातन काल से भाषा, भूषा और परिवेश के विविधता के बावजूद सारे भारतीयों को एकात्मता के सूत्र में बांधता है।  वैदिक परम्परानुसार  राष्ट्र के निर्माण में और विकास में पुरोहित की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।  वेद में पुरोहित राज्य का सर्वोपरि शुभचिंतक माना गया है।  ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार  वह राजा का अर्धांग या अर्ध-आत्मा होता है- अर्धात्मो ह वा एष क्षत्रियस्य यत् पुरोहितः (ऐतरेय ब्राह्मण 7.26) निरुक्तकार यास्क का मानना है कि जो धर्मकृत्य के संपादन में सर्वदा अग्रणी रहे वह पुरोहित कहलाता है- पुर: एनं दधति ( निरुक्त 2.2)

पुरोहित को राष्ट्रगोप या राष्ट्ररक्षक भी कहा गया है- राष्ट्रगोपः पुरोहित: (ऐतरेय ब्रा. 8.5.27)

अथर्ववेद में राष्ट्र से सम्बद्ध एक मंत्र का अभिप्राय है कि तत्वज्ञानी ऋषियों ने लोककल्याण की भावना से जितने भी नियम बनाए उनमें तप (अनुशासन) तथा दीक्षा (समर्पण) का स्थान सर्वोपरि है।  इन्हीं के द्वारा राष्ट्र, शक्ति और ओज की उत्पत्ति होती है अतः देवता इन्हें प्रणाम करते हैं-

भद्रमिच्छन्त ऋषय: स्वर्विद:

तपो दीक्षामुपनिषेदुरग्रे।

ततो राष्ट्रं बलमोजश्च जातं

तदस्मै देवा उपसंनमन्तु।। (अथर्व. 19.41.1)

 

 भारतीय परंपरा में ऋषि क्रान्तदर्शी- दूरदर्शी प्रज्ञा के प्रतीक हैं जिन्होंने तप और दीक्षा के रूप में कठोर अनुशासन तपश्चर्या तथा राष्ट्र के प्रति एकांतिकी निष्ठा या दीक्षा को आचरण में प्रमुखता दी।  राष्ट्र को शक्ति संपन्न और संप्रभु बनाने के लिए क्रान्तदर्शी नेता- पुरोहित अनवरत कर्तव्य पालन एवं  निष्ठा के साथ  आत्मार्पण करता है।  आधुनिक भारत के इतिहास में भारत के राष्ट्रीय स्वरूप की एकता और अखंडता के लिए जिस विभूति को सदैव स्मरण किया जाता है उनका नाम है लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल। जब भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के द्वारा ब्रिटिश सम्राट का अधिराजत्व समाप्त हुआ तथा भारत की देसी रियासतों ने अंग्रेजी राज से पहले वाली स्थिति प्राप्त कर ली तब उनके पास भारत या पाकिस्तान डोमिनियन में विलय की स्वतंत्रता थी।  सरदार पटेल की बुद्धिमत्ता और निर्णय क्षमता का ही परिणाम था कि 552 देसी रियासतों ने 15 अगस्त 1947 के पहले ही भारत डोमिनियन में अपना अधिमिलन कर दिया।  पटेल-स्कीम के अंतर्गत ही भारत का एकीकरण संपन्न हुआ। सरदार ने फरवरी 1948 से लेकर जुलाई 1949 तक रियासतों का विलय करते हुए एकीकृत भारत में मध्यभारत, पटियालापंजाब, राजस्थान, सौराष्ट्र और त्रावणकोर-कोचीन के रूप में पाँच संघ बनाए।  सरदार पटेल की इच्छा शक्ति और नेतृत्व का परिणाम है कि हैदराबाद, जूनागढ़ तथा कश्मीर भी भारतसंघ में शामिल हुए तथा प्राचीन भारतीय राष्ट्रीय पहचान तथा गौरव की एक बार पुनः स्थापना हुई।  देसी रियासतों का प्रारंभिक विलय प्रतिरक्षा, विदेश कार्य और संचार के मामलों के लिए ही था परंतु सरदार पटेल की प्रज्ञा और पुरुषार्थ के फलस्वरूप उनका भारत में पूर्णविलय हुआ तथा आसेतु हिमालय भारत राष्ट्र का एकीकृत वही स्वरूप साकार हुआ जिसका प्राचीन साहित्य में भारतवर्ष के नाम से अभिनंदन हुआ। हिमालय के दक्षिण में और समुद्र के उत्तर के भू-भाग का नाम भारतवर्ष है तथा उसकी संतान भारती कहलाती है-

उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चचैव दक्षिणम्।

वर्षं तद भारतं नाम  भारती यत्र संतति:।।

सरदार पटेल ने सदैव ही अहम् (मैं) के स्थान पर वयम् (हम सब)  को प्रतिष्ठित किया।  लौह के समान दृढ़ संकल्प और क्रियाशक्ति के साथ राष्ट्रपुरोहित की अग्रणी भूमिका का निर्वाह करते हुए सरदार पटेल ने  भारत की अंतरात्मा के राष्ट्रीय स्वरूप का जागरण किया।  उन्होंने भारत को एकसूत्र में बांधा तथा वेदमंत्र -“वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता:” (यजुर्वेद 9.23) को साकार किया। वैदिक परंपरा में अग्निदेव पृथ्वी के पुरोहित हैं, वायुदेव अंतरिक्ष के पुरोहित तथा सूर्यदेव द्युलोक के पुरोहित माने जाते हैं।  आधुनिक भारतवर्ष के समयुगीन पुरोहित सरदार वल्लभभाई पटेल कहे जा सकते हैं।  सरदार पटेल ने अपने कर्म के द्वारा राष्ट्रगोप- राष्ट्ररक्षक के धर्म को पूर्ण चरितार्थ किया।

आधुनिक विश्व के इतिहास में अदम्य साहस और शौर्य  की महागाथा श्रीमती इंदिरा गांधी के नाम भी है। अंग्रेजों द्वारा भारत विभाजन के 24 वर्ष बाद श्रीमती गांधी के मजबूत इरादे और कुशल नेतृत्व ने बंगाल को पाकिस्तान के दमनचक्र से मुक्ति दिलाई।  जब अमेरिका तथा अधिकांश यूरोपीय देश पाकिस्तान का  समर्थन कर रहे थे तब भी भारत ने लोकतांत्रिक मूल्यों एवं मानवीय गरिमा की रक्षा करते हुए बंगाल के मुक्तिसंग्राम में सहयोग किया।  पाकिस्तानी सेना की मदद के लिए हिंद महासागर में आए अमेरिकी युद्ध पोतों को वापस लौटना पड़ा।  इंदिराजी के समय भारतीय सेनाओं ने देश की पश्चिमी सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए लाहौर तक अपनी धमक कायम की तथा पूर्व की ओर 16 दिसंबर 1971 ढाका में पाकिस्तानी सेना के 90000 सैनिकों के साथ जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण किया। वह भारतीय लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने हाथ बांधकर घंटों खड़ा रहा।  भारत की इस महान शौर्यगाथा का श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के फौलादी नेतृत्व को जाता है।  प्रतिपक्ष के मुखरनेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने तब इंदिराजी को दुर्गा कह कर सम्मानित किया था।  वैदिक परंपरा में कठोर अनुशासन तथा पूर्ण समर्पण से ही  शक्ति का जन्म माना गया है । इंदिराजी ने इसे चरितार्थ किया कि तप और दीक्षा से राष्ट्र और शक्ति दोनों का जन्म होता है। इंदिराजी ने पंजाब में राष्ट्रीयएकता और अखण्डता के लिए खतरा बन रहे अलगाववाद की चुनौती का डट कर मुकाबला किया तथा राष्ट्र की अखण्डता को अक्षुण्ण रखा। इसकी कीमत उन्होंने अपने रक्त से चुकाई।

जिन्होंने शत्रुओं को नतमस्तक कर मानवीय गरिमा को अभूतपूर्व संरक्षण प्रदान किया तथा सरदार पटेल द्वारा रूपायित राष्ट्र की भौगोलिक एकता और अखण्डता के लिए आत्माहुति प्रदान की।

 आज 31 अक्टूबर 2020 को भारतवासी अपने राष्ट्र-पुरोहित सरदार वल्लभभाई पटेल का 145 वां जन्मदिन  राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाते हुए उनके महान और प्रेरणादायी जीवनमूल्यों का स्मरण करते हैं।  देशवासी भारत की राष्ट्रीयएकता और अखंडता के संकल्प दोहराने के साथ ही फौलादी इच्छाशक्ति वाली दुर्गा-स्वरूपा भारतीयनारी श्रीमती इंदिरागांधी का भी पुण्यस्मरण करते हैं

प्रो. नीरज शर्मा

अध्यक्ष, संस्कृत विभाग

मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर

neeraj.sanskrit@gmail.com

9414292699

संदर्भ:

यजुर्वेद संहिता

अथर्ववेद संहिता

ऐतरेय ब्राह्मण

भारत का संविधान एक परिचय; डी.डी.बसु www.amarujala.com

Comment (1)

  1. Varun Kumar Vashishth

    Pranam h Aap ko

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