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राष्ट्रीय एकता दिवस एवं राष्ट्रीय संकल्प दिवस 2021

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राष्ट्रीय एकता दिवस एवं राष्ट्रीय संकल्प दिवस 2021

धर्मार्थकाममोक्षाणामुपदेशसमन्वितम्।

पूर्ववृत्तं कथायुक्तमितिहासं प्रचक्षते।।

इतिहास महापुरुषों के चरित-वर्णन के माध्यम से उनके द्वारा सम्पादित अनुकरणीय कार्यों में प्रवृत्ति एवं अननुकरणीय कार्यों से निवृत्ति की प्रेरणा प्रदान करता है तथा जीवन के परम प्रयोजन धर्म-अर्थ काम-मोक्ष को प्राप्त करने में सहायक होता है। इतिहास हमें अतीत के प्रकाश में वर्तमान की उलझनों, कठिनाईयों एवं समस्याओं को सुलझाने की दृष्टि प्रदान करता है  एवं सुनहरे भविष्य के निर्माण की नींव रखता है। इतिहास का बोध नवीन पीढी को महापुरुषों के आदर्शों का परिचय कराते हुए चरित्र निर्माण में सहायक बनता है, साथ ही सामयिक सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनैतिक स्थितियों का बेहतर समाधान खोजने में मदद भी करता है। राष्ट्र निर्माण में असंख्य महापुरुषों का योगदान रहा है, परन्तु यह विडम्बना ही है कि हम सार्वकालिक महत्त्व वाले महापुरुषों को भी केवल उनकी जयन्ती अथवा पुण्य तिथि पर ही स्मरण करते हैं।

               आज 31 अक्टूबर का दिन भारतीय इतिहास की दो महान् विभूतियों को याद करने का दिन है। आज देश की एकता एवं अखण्डता के प्रतीक लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म दिन राष्ट्रीय एकता दिवस‘ तथा विश्व राजनीति में लौह-महिला (Iron Lady) के नाम से पहचानी जाने वाली इन्दिरा गाँधी की पुण्य तिथि को राष्ट्रीय संकल्प दिवस‘ के रूप में मनाया जा रहा है।

               स्वतन्त्रता आन्दोलन एवं स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् अपने अद्वितीय योगदान के कारण सरदार पटेल को भारतीय राजनैतिक इतिहास में अन्यन्त गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाद में एक किसान परिवार में जन्में पटेल अपनी कूटनीतिक क्षमताओं के लिए जाने जाते हैं। लंदन में बैरिस्टर की पढाई करने के पश्चात् अहमदाबाद में वकालात करने लगे। महात्मा गाँधी से प्रेरित होकर स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। 1918 में खेड़ा आन्दोलन तथा 1928 में बारदोली सत्याग्रह में किसानों का सफल नेतृत्व किया। गाँधीजी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन, स्वराज आन्दोलन, दांडी यात्रा तथा भारत छोड़ो आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् पण्डित जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधान मंत्री बने तथा सरदार पटेल ने उप प्रधान मंत्री के रूप में गृह, सूचना एवं रियासत मंत्री का पदभार सम्भाला। स्वतन्त्रता प्राप्ति के ठीक पूर्व ही वी पी मेनन के साथ मिलकर सरदार पटेल ने देशी रियासतों को भारत में मिलाने का कार्य शुरू कर दिया था। राजकोट, जूनागढ़, वहालपुर, बड़ौदा, हैदराबाद और कश्मीर को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करने में अनेक जटिलताओं का सामना करना पड़ा। परन्तु अन्ततः सरदार पटेल  को अद्भुत सफलता प्राप्त हुई। बिना किसी रक्तपात के 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास की एक आश्चर्यपूर्ण घटना है। इस सफल राजनैतिक एकीकरण के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौहपुरुष कहा जाता है। 15 दिसम्बर 1950 को उनके निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में उन्हें भारत के सर्वोच्‍च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न‘ से अलंकृत किया गया। उनकी स्‍मृति के रूप में गुजरात में नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध के निकट विश्‍व की सबसे ऊॅची 182 मीटर की विशाल एकता की मूर्ति (Statue of Unity) का निर्माण करवाया गया है।

               इन्दिरा गाँधी का जन्म 19 नवम्बर 1917 को पण्डित जवाहरलाल नेहरू एवं कमला नेहरू की इकलौती पुत्री के रूप में हुआ। इनका परिवार स्वतन्त्रता आन्दोलन से जुड़ा होने के कारण तात्कालिक पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों ने उन्हें एक मजबूत व्यक्तित्व प्रदान किया जो आगे चलकर उनके सफल राजनैतिक जीवन का आधार बना। बचपन से ही ये स्‍वतन्‍त्रता संग्राम में सक्रिय रही। परिवार के माहौल में राजनैतिक विचारधारा इन्‍हें विरासत में मिली।

               फरवरी 1959 में इन्दिरा गाँधी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनी। फरवरी 1960 में कार्यकाल पूरा होने पर इन्हें पुनः अध्यक्ष बनने के लिए आग्रह किया गया, परन्तु इन्होंने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया और श्री के. कामराज को अध्यक्ष बनवा दिया।

               पण्डित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के 19 दिन पहले इन्दिरा ने अपनी मित्र डोरोथी नॉर्मन को अपनी भावी योजना बताते हुए लिखा कि ‘वह कम से कम एक वर्ष के लिए भारत से बाहर रहना चाहती हैं और वहाँ की मुद्रा प्राप्त करने के लिए किसी काम की तलाश में हैं।‘ 27 मई 1964 को नेहरू जी का देहान्त हो गया। लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने। जनवरी 1966 को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर किए उसी रात को हृदयाघात से शास्त्रीजी का निधन हो गया। प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस संसदीय दल के चुनाव हुए और मोरारजी देसाई को 169 और इन्दिराजी को 355 वोट मिले। परिणाम स्वरूप 24 जनवरी 1966 को इन्होंने प्रधानमन्‍त्री के पद एवं गोपनीयता की शपथ ली।

               प्रधानमंत्री का पद संभालते ही इन्होंने भयानक अकाल, मिजो जनजातियों का विद्रोह, पंजाब में भाषाई आन्दोलन, गौ रक्षा आन्दोलन आदि अनेक चुनौतियों का दृढ़ता एवं निर्भिकता से सामना किया। गौ रक्षक साधुओं की हिंसक भीड़ पर पुलिस फायरिंग में आठ साधुओं की मौत की देश भर में हो  रही निंदा को शान्त करने के लिए इन्होंने वरिष्ठ राजनेता गुलजारीलाल नंदा को गृहमंत्री के पद से हटा दिया। गौ वध रोकने के सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश ए के सरकार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसमें राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के श्री एम. एस. गोवलकर, पुरी के शंकराचार्य, अर्थशास्त्री अशोक मित्रा आदि विशिष्ट व्यक्तियों को शामिल किया गया।

               1967 में चुनाव जीतकर ये पुनः प्रधानमंत्री बनीं। इस बार इन्होंने दो बडे़ निर्णय लिए। प्रथम इन्‍होंने राजा-महाराजाओं का प्रीवी पर्स समाप्त कर उनकी संपत्तियाँ भारत सरकार में शामिल कर ली, तथा दूसरा 14 बडे़ बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया।

               1971 में पुनः चुनाव जीतकर सत्ता में लौटीं तो इन्होंने पाकिस्तान को बुरी तरह पराजित कर बांग्लादेश का निर्माण कर दिया। 1974 में पोखरण में किए गए परमाणु परीक्षण तथा 1975 में सिक्किम के भारत में विलय से ये विश्व पटल पर महान् नेता के रूप में स्थापित हो गई। 26 जून 1975 को इन्होंने ‘राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा‘ बताते हुए आपातकाल की घोषणा कर दी, जिसका देश भर में विरोध हुआ। परिणामस्‍वरूप 1977 में कांग्रेस की चुनाव में हार हुई तथा देश में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। परन्तु विरोधाभास तथा वैचारिक मतभेदों के कारण जनता पार्टी की सरकार अपना कार्यकाल पूर्ण नहीं कर पाई तथा 1980 में इन्दिरा गाँधी पुनः सत्ता में आ गई। इस बार खालिस्तानी आतंकवाद इनके लिए बहुत बड़ी चुनौती बना। अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में चरमपंथियों का जमावड़ा होने लगा। जून 1984 में इन्दिरा गाँधी ने सेना को मन्दिर परिसर में घुसने और ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाने का आदेश दिया। उनके इस फैसले से नाराज उनके अंगरक्षकों ने 31 अक्टूबर 1984 को उनकी हत्या कर दी।

               सरदार वल्लभ भाई पटेल एवं इन्दिरा गाँधी दोनों ही वैयक्तिक तौर पर कठोर अनुशासन के धनी, दृढ निश्चयी, तत्काल निर्णय लेने में आत्मनिर्भर, संकल्पशील और आलोचनाओं से विचलित नहीं होने वाले नेता थे। दोनों ने ही अपने फौलादी व्यक्तित्व एवं अदम्य उत्साह, असीम शक्ति, सकारात्मक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण से निर्भय होकर तात्कालीन समस्याओं का समाधान करने में सफलता प्राप्त की। कृतज्ञ राष्ट्र आज इन दोनों विभूतियों को  हृदय के अन्तःस्थल से स्मरण कर रहा है।

डॉ सुभाष शर्मा

पूर्व विभागाध्यक्ष एवं अधिष्ठाता साहित्य

जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत

विश्वविद्यालय, जयपुर

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