सृष्टि के दृश्यादृश्य, चेतन अचेतन, चराचर आदि समस्त पदार्थो की गतिशीलता के सिद्धान्त का प्रतिपादन स्वयं जगत् संसार आदि शब्दों से सिद्ध होता है। गच्छति इति जगत्-, संसरति इति संसार:, भवति इति भुवनम् आदि शब्द का व्युत्पत्ति लभ्य अर्थ भी गतिशीलता की पुष्टि करता है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि इस सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ निरन्तर गतिशीलता के सिद्धान्त से जुडा है चाहे वह स्थावर हो या जङ्गम । यहाঁ शंका उठती है कि जो स्थावर है वह गतिशील कैसे हो सकता है \ इसको समझने के लिए हमें खगोल मण्डल के बारे में सूक्ष्म दृष्टि से विचार करना होगा, जहाঁ वर्तमान सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी आदि समस्त ग्रह, उपग्रह नक्षत्र आदि चलायमान हैं। जब पृथ्वी चलायमान है तो पृथ्वी पर स्थित समस्त स्थावर पदार्थ पृथ्वी की गति से गतिशील हैं जैसे वायुयान में बैठे हम वायुयान के चलायमान होने पर भी अपनी सीट पर स्थिर हैं किन्तु फिर भी वायुयान की गतिशीलता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुঁच जाते है हैं। यही सिद्धान्त पृथ्वी आदि लोकों में स्थित समस्त स्थावर पदार्थो पर लागू होता है।
यह गतिशीलता ही सृष्टि का मूल कारण है जिसे हम ब्रह्म नाम से अभिहित करते हैं। क्योंकि बृंहति इति ब्रह्म अर्थात् जो वृद्धि को प्राप्त करता है वह ब्रह्मा है, जहाঁ गति हो, वृद्धि हो वहाঁ नाद होना स्वाभाविक ही है। यह स्वाभाविक नाद ही सृष्टि की सूक्ष्म-सत्ता का कारक है।
आधुनिक विज्ञान से जुडे लोग इसे प्रकल्पन अर्थात् वाइब्रेशन कहते हैं । इस स्पन्दन को ही कान्टम सिद्धान्त के रूप में स्वीकार करते हुए पैकेट्स ऑफ एनर्जी मानते है।
आधुनिक विज्ञान के सृष्टि उत्पादक तत्त्व इलैक्ट्रोन और प्रोटोन की परिकल्पना को इसी से समझा जा सकता है इनमें प्रोट्रोन स्थिर है और इलैक्ट्रोन उसके चारों तरफ चक्कर लगाता है। यहाঁ सांख्य दर्शन के अनुसार ब्रह्म अक्षर पुरुष को प्रोटोन और क्रियाशील प्रकृति को इलैक्ट्रोन कहा जा सकता है।
शास्त्रकारों ने इस ब्रह्म के दो स्वरूपों का वर्णन करते हुए कहा है-