वेद और पर्यावरण
May 31, 2021 2021-05-31 11:51वेद और पर्यावरण

भारतीय साहित्य में ऋक्, यजु, साम एवम् अथर्व नाम के चार वेद परिगणित हैं। इनमें अग्नि, जल एवम् अन्न की स्तुति संहिताओं के प्रारम्भ में की गई है। प्रकृति में पांच तत्त्व प्रमुख है – पृथिवी, जल, तेज, वायु एवम् आकाश। इन तत्त्वों से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण मन्त्र वैदिक संहिताओं में विपुल मात्रा में उपलब्ध होते हैं।
अथर्ववेद का पृथिवी सूक्त प्रकृति के पर्यावरण चिन्तन में सर्वोत्कृष्ट कहा जा सकता है – क्योंकि इसमें मातृभूमि माता के रूप में चित्रित की गई है। माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या: (अथर्व 12.1.12) अर्थात् भूमि मेरी माता है और मैं मातृभूमि का पुत्र हूं। यह बडी ही उदात्त भावना का प्रेरक मन्त्र है। भाषा तथा भाव की दृष्टि से नितान्त उदात्त भावगर्भित तथा सरस पृथिवी की महिमा का यह वर्णन स्वतन्त्रता के प्रेमी तथा स्वच्छन्दता के रसिक आथर्वण ऋषि का हदयोद्गार है। इस शैली के प्रौढ काव्य की उच्च कल्पना तथा भव्य भावुकता वैदिक साहित्य में भी अन्यत्र दुर्लभ है। इस सूक्त में आथर्वण ऋषि ने 63 मन्त्रों में मातृरूपिणी भूमि की समग्र पार्थिव पदार्थों की जननी तथा पोषिका के रूप में महिमा उद्घोषित की है तथा प्रजा को समस्त बुराईयों/क्लेशों तथा अनर्थों से बचाने एवं सुख-सम्पत्ति की वृष्टि के लिए प्रार्थना की है।
इस भूमि के निर्माण तथा संरक्षण में देवताओं का सहयोग जागरुक रहा है। अश्विनों ने जिसे मापा, विष्णु ने पाद प्रक्षेपों को रखा, शक्ति के स्वामी इन्द्र ने जिसे अपने लाभ के लिए शत्रुओं से रहित बनाया वह भूमि मुझे उसी प्रकार दूध दे जिस प्रकार माता अपने पुत्र को स्वत: अनुराग से दूध पिलाती है। सा नो भूमि: विसृजतां माता पुत्राय मे पय: इस वाक्य में कितनी ममता भरी हुई है। पृथिवी के ऊपर नाचने, कूदने, फांदने तथा लडने भिडने का अत्यन्त स्वाभाविक चित्रण यहां किया गया है। पृथिवी का एकांगी रूप प्रस्तुत न होकर उसका सर्वांगीण रूप इस सूक्त में उपस्थित है। पृथिवी के ऊपर नदी तथा पर्वत सदा लाभदायक बने, छ: ऋतुओं का आगमन प्रजा के कल्याण के निमित्त हो, समग्र प्रजा एक समष्टि के रूप में कल्याण की भाजन बने। पृथिवी से प्रार्थना है कि जितने सर्प, वृश्चिक, हिंसक तथा रोगवर्धक कीटाणु वर्षा के आगमन पर उत्पन्न होते है तथा प्रजा को महती हानि पहुंचाते हैं वे सभी पृथिवी पर रहते हुए हमसे दूर भाग जाए तथा शिव (कल्याण) हमारे पास आये। इस प्रकार पृथिवी सूक्त अथर्ववेदीय मन्त्रों की महनीय राष्ट्रीयता का संवाहक बनकर आज भी हमारे लिए उत्साह तथा उल्लास का सद्य: प्रेरक है। अथर्ववेद के प्रथम मन्त्र में जल की स्तुति प्राप्त होती है। उसमें कहा गया है कि जल देवता हमारे कल्याण के लिए हो और हमें सदा उपलब्ध रहें। इस प्रकार का मन्त्र विन्यास पर्यावरण चेतना की सजीवता प्रमाणित करता है। यजुर्वेद का प्रथम मन्त्र अन्न की स्तुति हेतु प्रसिद्ध है इषेत्वा (यजुर्वेद 1.1)। इसी प्रकार अग्नि तत्त्व ऋक् एवं सामवेद क प्रारम्भ में निर्दिष्ट किया गया है। वायु और आकाश तत्त्व भी यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय में अत्यन्त सजीव रूप में कहे गये हैं। इस प्रकार चारों वेद पर्यावरण चेतना की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रो. राजेन्द्र प्रसाद मिश्र
से.नि. आचार्य एवम् अध्यक्ष, वेद विभाग,
जगद्गुरु रामानन्दाचार्य, राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर – 26
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Comments (2)
Pooja chandwani
Gtanvardhak jankaari
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Pooja chandwani
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